लुधियाना पश्चिम उपचुनाव: केजरीवाल की रणनीति और कांग्रेस की चुनौती

लुधियाना पश्चिम सीट पर उपचुनाव की तैयारी
देश के चार राज्यों में पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, लेकिन पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर चुनाव का राजनीतिक महत्व सबसे अधिक है। यह सीट आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी के निधन के कारण खाली हुई है। उपचुनाव 19 जून को होगा। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने इस सीट के लिए पंजाब में डेरा डाला हुआ है और उन्होंने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। यह माना जा रहा है कि केजरीवाल ने अरोड़ा को इसलिए चुना है ताकि यदि उनकी सीट खाली हो जाए, तो वे खुद उच्च सदन में जा सकें। यह स्थिति दर्शाती है कि केजरीवाल का नेतृत्व कितना कमजोर हो गया है। उन्होंने अभिषेक सिंघवी के लिए स्वाति मालीवाल की सीट खाली कराने में भी असफलता का सामना किया था, और अब खुद के लिए सीट खाली कराने में भी परेशानी आ रही है। संजीव अरोड़ा को जीतने पर मंत्री बनना होगा, तभी वे राज्यसभा सीट खाली कर पाएंगे।
कांग्रेस की रणनीति और संभावनाएँ
हालांकि, यह समस्या केवल एक सीट की नहीं है, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 92 पर जीत हासिल की थी और बाद में दो सीटें उपचुनाव में भी जीती थीं। असली मुद्दा केजरीवाल के सांसद बनने का है। यदि संजीव अरोड़ा चुनाव हार जाते हैं, तो स्थिति क्या होगी? सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है। कांग्रेस ने भारत भूषण आशु को उम्मीदवार बनाया है, जो पहले भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने हाल ही में राहुल गांधी से मुलाकात की थी और पंजाब में बदलाव की संभावना की बात की थी। हालांकि, पिछले उपचुनावों में कांग्रेस की हार ने उनकी दावों को कमजोर किया है।
आम आदमी पार्टी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता
कांग्रेस की जीत की संभावनाएँ इसलिए भी बढ़ रही हैं क्योंकि अकाली दल और भाजपा दोनों आम आदमी पार्टी को हराने के लिए एकजुट हो सकते हैं। अकाली दल ने परुपकर सिंह घुमन को उम्मीदवार बनाया है, जो आप के पंजाब और सिख वोट में सेंध लगाने का प्रयास करेंगे। वहीं, भाजपा ने जीवन गुप्ता को मैदान में उतारा है, जो मजबूत उम्मीदवार नहीं माने जा रहे हैं। दूसरी ओर, आशु कांग्रेस के प्रमुख हिंदू चेहरों में से एक हैं, जिससे हिंदू वोट उनके पक्ष में एकजुट हो सकता है। भाजपा भी नहीं चाहेगी कि केजरीवाल राज्यसभा में पहुंचें, क्योंकि इससे सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यदि आम आदमी पार्टी लुधियाना पश्चिम सीट नहीं जीतती है, तो केजरीवाल का नेतृत्व कमजोर होगा, जिसका लाभ कांग्रेस को दिल्ली में मिल सकता है।