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लेह में हिंसा के लिए सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया गया

लेह में हालिया हिंसा के लिए केंद्र सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है। वांगचुक के अनशन और भड़काऊ भाषणों के बाद युवाओं में असंतोष बढ़ा, जिससे तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं। केंद्र का कहना है कि बातचीत का दायरा वह स्वयं निर्धारित करता है और संगठनों को इससे बाहर नहीं जाना चाहिए। इस स्थिति में, स्थानीय लोगों की पूर्ण राज्य की आकांक्षा और पहचान की सुरक्षा की मांग को नजरअंदाज करना लोकतांत्रिक नहीं है। जानें इस मुद्दे की गहराई और केंद्र की प्रतिक्रिया।
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लेह में हिंसा के लिए सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया गया

लेह में हालिया हिंसा का विश्लेषण

यह आवश्यक है कि मांगों पर ध्यान देने में देरी या अनंत वार्ताओं से लोगों का असंतोष बढ़ता है, जो अंततः आक्रोश में बदल सकता है। इससे गतिरोध की स्थिति उत्पन्न होती है, जो शांति के लिए अनुकूल नहीं है।


केंद्र सरकार ने लेह में हुई हिंसा का आरोप सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर लगाया है। सरकार का कहना है कि वह लेह एंड कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के साथ उन मुद्दों पर बातचीत कर रही है, जिनके कारण वांगचुक ने 10 सितंबर को अनशन शुरू किया। इसके बाद उन्होंने अपने भाषणों में 'भड़काऊ' टिप्पणियाँ कीं, जिसमें अरब स्प्रिंग और नेपाल के जेनरेशन-जेड प्रतिरोध का उल्लेख किया गया। केंद्र के अनुसार, इसी कारण 14 सितंबर को लेह में युवाओं ने तोड़फोड़ और आगजनी की, जिसमें चार लोगों की जान गई और कई अन्य घायल हुए।


केंद्र का यह भी कहना है कि बातचीत और समाधान का दायरा वह स्वयं निर्धारित करता है, और संगठनों को इससे बाहर नहीं जाना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं, तो संवाद स्थापित करना केंद्र की जिम्मेदारी नहीं है। साथ ही, यदि इस दौरान कोई अप्रिय घटना होती है, तो उसकी जिम्मेदारी आयोजक संगठन की होगी। हाल के वर्षों में, सरकारों ने इसी दृष्टिकोण से विभिन्न प्रतिरोधों और असंतोषों का सामना करने का प्रयास किया है। यह दृष्टिकोण लद्दाख में भी अपनाया गया है।


छह साल पहले, केंद्र ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को एकतरफा और गुप्त तरीके से समाप्त कर दिया था, जिससे राज्य को दो भागों में विभाजित किया गया। दोनों हिस्सों को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। तब से, दोनों क्षेत्रों के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा मांग रहे हैं। वांगचुक और उनके समर्थकों की भी यही प्रमुख मांग है। सवाल यह है कि स्थानीय लोगों की पूर्ण राज्य की आकांक्षा और संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत पहचान की सुरक्षा की मांग को कब तक नजरअंदाज किया जाएगा? यह समझना आवश्यक है कि मांगों पर ध्यान न देने से असंतोष बढ़ता है, जो शांति के लिए हानिकारक है। दुर्भाग्यवश, देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे गतिरोध के बिंदु बनते जा रहे हैं। इसलिए, यह आवश्यक हो गया है कि केंद्र अपनी दृष्टि में सुधार करे। हर प्रतिरोध को नाजायज मानने का दृष्टिकोण लोकतांत्रिक नहीं है।