लोकसभा में डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति पर बढ़ता विवाद
डिप्टी स्पीकर की अनुपस्थिति पर सरकार की अनदेखी
सरकार को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली है। पिछली लोकसभा का कार्यकाल बिना डिप्टी स्पीकर के ही सफलतापूर्वक पूरा हुआ था, और इससे कोई बड़ी समस्या उत्पन्न नहीं हुई। स्पीकर सभी कार्यों को संभालने में सक्षम हैं, और उनकी अनुपस्थिति में पीठासीन अधिकारियों का एक पैनल सदन का संचालन करता है। इस पैनल में संचार घोटाले के आरोपी ए राजा भी शामिल हैं। हालांकि, सरकार की इस अनदेखी के बावजूद, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तात्कालिकता पर जोर दिया है। कांग्रेस का मानना है कि परंपरा के अनुसार यह पद विपक्षी पार्टी को मिलना चाहिए।
सरकार की रणनीति और विपक्ष की मांग
सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को नहीं दिया जाएगा। नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2014 में डिप्टी स्पीकर के लिए अन्ना डीएमके के नेता थंबीदुरैई को चुना था। इस बार भी, सरकार दक्षिण भारत की सहयोगी पार्टी टीडीपी को यह पद देने पर विचार कर सकती है, क्योंकि टीडीपी ने भाजपा के प्रति सकारात्मक रुख दिखाया है। आंध्र विधानसभा में भाजपा के केवल आठ विधायक हैं, फिर भी टीडीपी ने उन्हें दो राज्यसभा सीटें दी हैं। ऐसे में भाजपा को भी टीडीपी को डिप्टी स्पीकर का पद देने में उदारता दिखानी चाहिए। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रबाबू नायडू अपने किसी नेता को यह महत्वपूर्ण पद देने के लिए उत्सुक नहीं हैं। भाजपा की अन्य सहयोगी जनता दल यू के हरिवंश राज्यसभा में उप सभापति हैं। अन्ना डीएमके का कोई सांसद लोकसभा में नहीं है, जबकि एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास सात सांसद हैं। फिर भी, भाजपा उनके लिए भी डिप्टी स्पीकर का पद देने में रुचि नहीं दिखा रही है। पिछली लोकसभा में बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियां बिना एनडीए में शामिल हुए सरकार के साथ थीं, लेकिन इस बार ऐसा कोई सहयोगी नहीं है। इसके बावजूद, सरकार पर दबाव है कि वह डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति करे, और मानसून सत्र में विपक्ष इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाएगा।
