लोकसभा में नए प्रवर समितियों का गठन: जानें प्रमुख नेताओं की भूमिका

लोकसभा में स्थायी समितियों का पुनर्गठन
बुधवार को लोकसभा ने अपने कई स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया और दो नई प्रवर समितियों का गठन किया। इन समितियों का मुख्य उद्देश्य जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2025 और दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2025 पर निगरानी और समीक्षा करना है। जन विश्वास प्रवर समिति की अध्यक्षता तेजस्वी सूर्या करेंगे, जबकि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता की प्रवर समिति का नेतृत्व बैजयंत पांडा करेंगे.
प्रमुख दलों के नेताओं की भागीदारी
संसदीय समितियों में कांग्रेस और अन्य प्रमुख दलों के नेताओं की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अब रक्षा संबंधी समिति के सदस्य हैं, जबकि प्रियंका गांधी वाड्रा गृह मामलों की समिति में शामिल हुई हैं। पी. चिदंबरम वित्त संबंधी समिति के सदस्य बने हैं और जयराम रमेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन समिति में सदस्य के रूप में कार्य करेंगे.
अन्य समितियों के अध्यक्षों की सूची
कई समितियों के अध्यक्षों की पुनर्नियुक्ति की गई है। कांग्रेस के शशि थरूर को विदेश मामलों की समिति का अध्यक्ष बनाए रखा गया है। द्रमुक की कनिमोझी करुणानिधि को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.
अन्य प्रमुख नामों में शामिल हैं:
- पी. सी. मोहन – सामाजिक न्याय और अधिकारिता समिति
- अनुराग ठाकुर – कोयला, खान और इस्पात समिति
- सप्तगिरि शंकर – ग्रामीण विकास और पंचायती राज समिति
- कीर्ति आजाद झा – रसायन और उर्वरक समिति
- राजीव प्रताप रूडी – जल संसाधन समिति
- मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी – आवास और शहरी मामले समिति
- सी. एम. रमेश – रेलवे समिति
- सुनील तटकरे – पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस समिति
- बसवराज बोम्मई – श्रम, कपड़ा और कौशल विकास समिति
- भर्तृहरि महताब – वित्त समिति
- श्रीरंग अप्पा चंदू बारने – ऊर्जा समिति
- राधा मोहन सिंह – रक्षा समिति
- निशिकांत दुबे – संचार और सूचना प्रौद्योगिकी समिति
- चरणजीत सिंह चन्नी – कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण समिति
संसदीय समितियां नियमित रूप से सदन को रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं, विधेयकों और नीतिगत पहलुओं पर सुझाव देती हैं और संबंधित विभागों के कामकाज की निगरानी करती हैं। नए अध्यक्षों और प्रवर समितियों के गठन से नीतिगत निर्णयों में अधिक पारदर्शिता और दक्षता लाने की उम्मीद है.