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वट सावित्री व्रत: नारी शक्ति और प्रेम का पर्व

वट सावित्री व्रत, जो नारी शक्ति और प्रेम का प्रतीक है, हर साल दो बार मनाया जाता है। इस पर्व पर महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। जानें इस वर्ष वट पूर्णिमा कब है, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में।
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वट सावित्री व्रत: नारी शक्ति और प्रेम का पर्व

वट सावित्री व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को नारी शक्ति, प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत करती हैं। वट वृक्ष की पूजा का भी विशेष महत्व है, क्योंकि इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास स्थान माना जाता है। इस व्रत को साल में दो बार मनाया जाता है, जिसमें पहला व्रत ज्येष्ठ अमावस्या और दूसरा ज्येष्ठ पूर्णिमा को होता है.


वट सावित्री व्रत की तिथियाँ

इस वर्ष पहला वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को मनाया गया था, जबकि वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून को होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, 10 जून की सुबह 11:35 बजे ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होगी, जो 11 जून 2025 को दोपहर 01:13 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, 10 जून को वट पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा.


शुभ मुहूर्त

वट पूजा मुहूर्त: सुबह 8:52 से दोपहर 2:05 तक
स्नान और दान का समय: सुबह 4:02 से 4:42 तक
चंद्रोदय: शाम 6:45 बजे


व्रत का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सत्यवान जंगल में मूर्छित हो गए थे, तब सावित्री ने उन्हें वट वृक्ष के नीचे लिटाया और बांस के पंखे से हवा करने लगीं। इस परंपरा को याद करते हुए, व्रत करने वाली महिलाएं पहले वट वृक्ष के नीचे पंखा झलती हैं और फिर अपने पतियों की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इसके बाद वे घर जाकर अपने पति के चरण धोकर उन्हें पंखा झलकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं.


पूजा विधि

इस दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फिर सुहाग की सामग्री लेकर पूजा की थाली सजाएं। वट वृक्ष के पास जाकर जल अर्पित करें, फिर रोली, दूध, चावल और फूल अर्पित करें। इसके बाद पेड़ के चारों ओर लाल धागा या सूती कच्चा धागा लेकर 7 या 21 बार परिक्रमा करते हुए वटवृक्ष में लपेटें। पूजा के अंत में सावित्रा और सत्यवान की कथा का पाठ करें और आरती करें.