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विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका पर साधा निशाना, जी-20 बैठक में उठाए महत्वपूर्ण मुद्दे

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में अमेरिका के दोहरे मानदंडों की आलोचना की। उन्होंने वैश्विक संघर्षों, विशेषकर यूक्रेन और गाजा में चल रहे संघर्षों के प्रभावों पर चर्चा की। जयशंकर ने शांति और विकास के बीच संबंध को स्पष्ट करते हुए, देशों से बातचीत और कूटनीति की ओर बढ़ने का आग्रह किया। उनकी टिप्पणियाँ वैश्विक ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर भी केंद्रित थीं, जो विकास को प्रभावित कर रहे हैं।
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विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका पर साधा निशाना, जी-20 बैठक में उठाए महत्वपूर्ण मुद्दे

विदेश मंत्री का अमेरिका पर हमला

विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका को किया टारगेट: गुरुवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने ऊर्जा खरीद, विशेषकर रूसी तेल के संदर्भ में अमेरिका के दोहरे मानदंडों की आलोचना की और वैश्विक संघर्षों के समाधान के लिए संवाद और कूटनीति की आवश्यकता पर जोर दिया।


आतंकवाद और बहुपक्षीय सुधारों की आवश्यकता

विदेश मंत्री ने वैश्विक संघर्षों और आतंकवाद पर एक स्पष्ट संदेश दिया, जिसमें उन्होंने अमेरिका के रूसी तेल के प्रति दृष्टिकोण पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधा। उन्होंने जी-20 विदेश मंत्रियों की बैठक में बहुपक्षीय सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर भी बल दिया। जयशंकर ने कहा कि जी-20 के सदस्य देशों की जिम्मेदारी है कि वे आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला करें और ऊर्जा एवं आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए संवाद और कूटनीति का सहारा लें।


दोहरे मानदंडों की स्पष्टता

दोहरे मानदंडों की पहचान:

जयशंकर ने शांति और विकास पर चर्चा करते हुए, यूक्रेन और गाजा में चल रहे संघर्षों के प्रभाव को उजागर किया, जिसने वैश्विक दक्षिण पर ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक सुरक्षा की उच्च लागत का बोझ डाला है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति और रसद में बाधा डालने के साथ-साथ, लागत और पहुंच भी देशों पर दबाव डाल रही हैं।


शांति और विकास का संबंध

शांति का विकास में योगदान:

विदेश मंत्री ने कहा कि शांति विकास को संभव बनाती है, लेकिन विकास को खतरे में डालने से शांति को बढ़ावा नहीं मिल सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा और अन्य आवश्यक वस्तुओं की अनिश्चितता से किसी को लाभ नहीं होता और देशों से आग्रह किया कि वे मामलों को जटिल बनाने के बजाय बातचीत और कूटनीति की ओर बढ़ें।