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शिबू सोरेन: आदिवासी समाज के नायक का निधन

झारखंड के प्रमुख नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया है, जो आदिवासी समाज की पहचान को जल, जंगल और जमीन से जोड़ने के लिए जाने जाते थे। उनके योगदान ने न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश में आदिवासी अधिकारों के लिए एक नई दिशा दी। शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा और उनके संघर्षों की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उनके निधन से झारखंड में शोक की लहर है, और लोग उन्हें 'गुरुजी' के नाम से याद कर रहे हैं।
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शिबू सोरेन: आदिवासी समाज के नायक का निधन

शिबू सोरेन का निधन: एक युग का अंत


  • राजनीतिक अस्थिरता के बीच झारखंड में शिबू सोरेन का योगदान


राजीव रंजन तिवारी: झारखंड और दिल्ली में शोक की लहर है। आदिवासी समाज की पहचान को जल, जंगल और जमीन से जोड़ने वाले शिबू सोरेन का निधन हो गया। उनके प्रशंसक इस दुखद समाचार से गहरे प्रभावित हुए हैं। शिबू का व्यक्तित्व शिष्टता, विनम्रता और विचारशीलता से भरा हुआ था।


सोमवार की सुबह जब यह खबर आई कि शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे, तो यह सुनकर विश्वास करना मुश्किल था। 81 वर्षीय शिबू सोरेन का अचानक निधन सभी को चौंका गया। झारखंड में उनके प्रति शोक की लहर दौड़ गई। लोग अपने प्रिय 'गुरुजी' की याद में दुखी हैं।


शिबू सोरेन केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि एक आंदोलनकारी थे जिन्होंने आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अपने जीवन के आरंभिक दिनों से ही देखा कि आदिवासी लोगों का शोषण हो रहा है और इसी अन्याय के खिलाफ उन्होंने 1960 के दशक में आवाज उठाई।


1970 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अलग झारखंड राज्य बनाना था। इसके लिए उन्होंने जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया। 1980 में वे पहली बार सांसद बने और संसद में आदिवासी समाज की समस्याओं को उठाया।


शिबू सोरेन की मेहनत रंग लाई और 2000 में झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के माध्यम से आदिवासी समाज की पहचान को मजबूती दी।


उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, जिसमें भ्रष्टाचार और हत्या के आरोप भी शामिल थे, लेकिन वे झारखंड की राजनीति में एक मजबूत नेता के रूप में जाने गए।


शिबू सोरेन को लोग स्नेहपूर्वक 'गुरुजी' कहते थे। नए राज्य के गठन के बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन गठबंधन राजनीति के कारण वे लंबे समय तक इस पद पर नहीं रह सके। फिर भी, उनकी राजनीतिक विरासत झारखंड की पहचान और संघर्ष की कहानी बयां करती है।


दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा और शराबबंदी के खिलाफ आंदोलन चलाया, जो कोयलांचल, संताल और कोल्हान क्षेत्र में चर्चित रहा।