शीतकालीन सत्र में कांग्रेस और भाजपा की राजनीति में बदलाव
नई दिल्ली: महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत
नई दिल्ली: शुक्रवार को समाप्त हुए संसद के शीतकालीन सत्र ने भारतीय राजनीति में दो महत्वपूर्ण बदलावों की ओर इशारा किया है। पहला संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक स्थिति से संबंधित है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सीटों में कमी के बाद यह धारणा बनी थी कि पीएम मोदी कमजोर हो गए हैं। हालांकि, शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार की कार्यप्रणाली और रणनीति ने इस धारणा को काफी हद तक समाप्त कर दिया। केंद्र की सत्ता भाजपा ने उसी आत्मविश्वास और नियंत्रण के साथ चलाने का प्रयास किया, जैसा कि पिछले दो कार्यकालों में देखा गया था।
कांग्रेस में बदलाव की झलक
दूसरा और अधिक दिलचस्प बदलाव कांग्रेस पार्टी के भीतर देखने को मिला। संसद सत्र के प्रारंभिक दिनों के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का नेतृत्व सक्रियता से किया। वहीं, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की भूमिका अपेक्षाकृत सीमित नजर आई। प्रियंका की सक्रियता और सहज राजनीतिक व्यवहार ने कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में नए संकेत दिए हैं।
पीएम मोदी के साथ संवाद का महत्व
19 दिसंबर 2025 को संसद के शीतकालीन सत्र के समापन के दिन एक असामान्य दृश्य देखने को मिला। स्पीकर के आमंत्रण पर आयोजित परंपरागत बैठक में प्रियंका गांधी ने खुलकर भाग लिया। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और सांसदों के साथ सहज बातचीत की। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा की, जिससे माहौल काफी अनौपचारिक नजर आया। कांग्रेस नेतृत्व और पीएम मोदी के बीच ऐसा दृश्य पिछले दो दशकों में शायद ही कभी देखा गया हो।
गडकरी से मुलाकात का सियासी असर
सत्र से एक दिन पहले प्रियंका गांधी वाड्रा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से संसद भवन में उनके कार्यालय में मिलने गईं। यह मुलाकात प्रश्नकाल के दौरान हुई बातचीत के बाद तय हुई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के लिए ऐसा व्यवहार असामान्य रहा है, खासकर राहुल गांधी के संदर्भ में। इससे यह संकेत मिला कि प्रियंका अब स्वतंत्र राजनीतिक निर्णय ले रही हैं या उन्हें नेतृत्व की बड़ी भूमिका के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
राहुल गांधी की अनुपस्थिति पर उठते सवाल
इसी बीच, सरकार के लिए महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी का विदेश दौरे पर होना भी चर्चा का विषय बना। भाजपा नेता रवनीत सिंह बिट्टू ने दावा किया कि कांग्रेस के भीतर राहुल और प्रियंका के बीच नेतृत्व को लेकर मतभेद चल रहे हैं। हालांकि यह बयान राजनीतिक आरोप के रूप में देखा गया, लेकिन कांग्रेस की हालिया गतिविधियों ने इन अटकलों को और हवा दी।
इंडिया ब्लॉक की एकजुटता में कमी
राहुल गांधी ने हाल के समय में वोट चोरी, ईवीएम और एसआईआर जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। बिहार चुनाव में इन मुद्दों को लेकर आक्रामक रणनीति अपनाई गई, लेकिन नतीजे कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के लिए निराशाजनक रहे। इसके बाद कई सहयोगी दलों ने इन मुद्दों से दूरी बनानी शुरू कर दी, जिससे विपक्षी गठबंधन की कमजोरी स्पष्ट हो गई।
कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग
शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस के एक पूर्व विधायक मोहम्मद मोकिम ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में युवा नेतृत्व को आगे लाने की मांग की। उन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम सुझाया और कांग्रेस में व्यापक संगठनात्मक सुधार की बात की। हालांकि पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया, लेकिन इसके बाद प्रियंका की बढ़ी सक्रियता ने संकेत दिया कि कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की आहट अब खुलकर सुनाई देने लगी है।
