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संयुक्त संसदीय समिति का गठन नहीं, विपक्षी दलों का बहिष्कार जारी

संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन अभी तक नहीं हो पाया है, जिससे विपक्षी दलों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कांग्रेस और अन्य दलों ने इस मुद्दे पर निर्णय नहीं लिया है, जबकि तृणमूल कांग्रेस और अन्य ने बहिष्कार की घोषणा की है। जानें इस राजनीतिक स्थिति के पीछे के कारण और संभावित परिणाम।
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संयुक्त संसदीय समिति का गठन नहीं, विपक्षी दलों का बहिष्कार जारी

जेपीसी का गठन न होना

मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को पद से हटाने के लिए लाए गए तीन विधेयकों पर विचार करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन अभी तक नहीं हो पाया है। इस समिति के गठन के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी ने नाम नहीं भेजे हैं। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने हाल ही में सभी दलों को नाम भेजने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन उन्होंने शनिवार, 13 सितंबर को बताया कि किसी भी पार्टी ने अभी तक नाम नहीं भेजे हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि किसी दल ने इस जेपीसी के बहिष्कार के लिए स्पीकर को कोई पत्र भी नहीं भेजा है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और आम आदमी पार्टी ने पहले ही बहिष्कार की घोषणा कर दी है। तृणमूल ने बताया कि अतीत में भी जेपीसी का बहिष्कार होता रहा है।


कांग्रेस का निर्णय और अन्य दलों की स्थिति

तीन विधेयक लोकसभा से पारित होकर जेपीसी के पास भेजे जाने के तीन हफ्ते से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन पार्टियां इस पर निर्णय क्यों नहीं ले रही हैं? एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कांग्रेस किस चीज का इंतजार कर रही है? यदि कांग्रेस अपना निर्णय ले लेती है, तो अन्य दलों का रुख भी स्पष्ट हो जाएगा। कांग्रेस के निर्णय के कारण डीएमके, राजद और जेएमएम जैसे दलों का निर्णय भी रुका हुआ है। ये सभी दल 'इंडिया' ब्लॉक का हिस्सा हैं, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस जनभावना का आकलन कर रही है और उसे लगता है कि अधिकांश दल इस विधेयक के खिलाफ हैं।


एनडीए के घटक दलों की चुप्पी

दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि एनडीए के घटक दलों की ओर से स्पीकर को नाम क्यों नहीं भेजे जा रहे हैं? स्पीकर ने कहा कि किसी ने नाम नहीं भेजा है, जिसका मतलब है कि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने भी नाम नहीं भेजे हैं। क्या एनडीए में इस विधेयक को लेकर कोई संशय है? या क्या एनडीए की पार्टियों ने नाम तय कर लिए हैं और विपक्षी गठबंधन का इंतजार कर रही हैं? यह एक दिलचस्प स्थिति है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और सत्तारूढ़ गठबंधन इस मामले में बहुत सावधानी बरत रहे हैं।