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संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग

संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता और उप राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता जताई है। असम के मुख्यमंत्री ने भी इस पर अपनी राय रखी है, यह कहते हुए कि ये शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। जानिए इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
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संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग

संविधान में बदलाव की मांग

नई दिल्ली। संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को हटाने की मांग तेजी से उठ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने 26 जून को इस मुद्दे को उठाया, यह बताते हुए कि ये शब्द मूल प्रस्तावना में शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान इन्हें जोड़ा था, इसलिए इन्हें हटाने पर विचार किया जाना चाहिए। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस विषय पर चर्चा की और इसे विचारणीय बताया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इन शब्दों को हटाने की मांग की है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और जितेंद्र सिंह पहले ही इस पर अपनी राय रख चुके हैं।


उप राष्ट्रपति का बयान

शनिवार को उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट किया कि संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत के अलावा किसी अन्य देश ने अपने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में 1976 में 42वें संशोधन के जरिए बदलाव किया गया था, जिसमें 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़े गए थे। धनखड़ ने कहा, 'इस पर विचार करना आवश्यक है। बी. आर. आंबेडकर ने संविधान पर बहुत मेहनत की थी और उन्होंने इस पर ध्यान केंद्रित किया होगा।'


मुख्यमंत्री का दृष्टिकोण

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान में 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवादी' शब्दों को जोड़ना दो प्रमुख परिणाम थे। उनका मानना है कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय विचारधारा के खिलाफ है, जो सभी धर्मों के प्रति समानता को दर्शाती है। उन्होंने यह भी कहा कि समाजवाद कभी भी उनकी आर्थिक दृष्टि का हिस्सा नहीं रहा, और उनका ध्यान हमेशा सर्वोदय और अंत्योदय पर रहा है। इसलिए, उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि इन दो शब्दों को प्रस्तावना से हटा दिया जाए, क्योंकि ये मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।