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संसद में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर चर्चा की आवश्यकता

भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती। हालांकि, बिहार विधानसभा में इस पर चर्चा हुई है, जिससे यह सवाल उठता है कि संसद में चर्चा क्यों नहीं हो सकती। विपक्ष और सरकार के बीच इस मुद्दे पर गहन बहस हुई है, जिसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। क्या सरकार एसआईआर से जुड़े सवालों से बच रही है? जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और क्या कहा गया है।
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संसद में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर चर्चा की आवश्यकता

संसद और चुनाव आयोग के बीच विवाद

भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि चुनाव आयोग द्वारा किए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे एसआईआर कहा जाता है, पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती। उनका तर्क है कि चुनाव आयोग भारत सरकार के किसी विभाग के अधीन नहीं है। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल द्वारा की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, उनके मंत्री और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष शामिल होते हैं। इसके बावजूद, यह कहा जा रहा है कि इस विषय पर संसद में चर्चा संभव नहीं है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब संसद में इस आधार पर चर्चा नहीं हो सकती, तो बिहार विधानसभा में यह कैसे संभव हुआ?


बिहार विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत एसआईआर पर चर्चा से हुई। इस विषय पर विधानसभा में गहन चर्चा हुई, जिसमें विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित कई अन्य नेताओं ने अपनी बात रखी। वहीं, राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजय चौधरी ने इस मुद्दे पर विस्तार से जवाब दिया। उन्होंने बताया कि 2003 में एसआईआर कैसे और कितने समय में हुआ था, और बिहार सरकार द्वारा कराई गई जाति गणना में कितना समय लगा। विजय चौधरी ने विपक्ष के हर सवाल का उत्तर दिया। इस स्थिति में यह सवाल उठता है कि यदि विधानसभा में चर्चा संभव है, तो निश्चित रूप से संसद में भी इसे उठाया जा सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह चर्चा चुनाव आयोग पर नहीं, बल्कि उसके एक अभियान पर है, जो चुनाव को प्रभावित कर सकता है। यदि सरकार इस पर चर्चा से बच रही है, तो इसका मतलब है कि वह एसआईआर से संबंधित सवालों के उत्तर देने से बचना चाहती है।