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सत्यपाल मलिक: भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण चेहरा

सत्यपाल मलिक, भारतीय राजनीति के एक प्रमुख चेहरे, ने छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल पद तक का सफर तय किया है। उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ काम किया और अंत में केंद्र सरकार की आलोचना करने वाले मुखर नेता के रूप में उभरे। उनके विचार, जैसे किसान आंदोलन और अग्निपथ योजना पर उनके बयान, उन्हें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व बनाते हैं। इस लेख में उनकी यात्रा और विचारों पर एक विस्तृत नजर डालें।
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सत्यपाल मलिक: भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण चेहरा

सत्यपाल मलिक की राजनीतिक यात्रा

78 वर्षीय सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ काम किया, सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे और अंततः एक मुखर आलोचक के रूप में सामने आए। छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत करने वाले मलिक का सफर विधानसभा से लेकर राज्यसभा और फिर राज्यपाल पद तक फैला हुआ है.


राजनीति में प्रारंभिक कदम

सत्यपाल मलिक ने 1968-69 में छात्र नेता के रूप में राजनीति में कदम रखा। उनकी निकटता चौधरी चरण सिंह से बनी और 1974 में वे बागपत से विधायक बने। इसके बाद, उन्होंने लोक दल में शामिल होकर 1980 में राज्यसभा में प्रवेश किया, लेकिन वहां ज्यादा समय नहीं टिक सके। 1984 में कांग्रेस में शामिल होकर, उन्होंने 1986 में फिर से राज्यसभा में जगह बनाई.


कांग्रेस से जनता दल और केंद्रीय मंत्री का कार्यकाल

राजीव गांधी के शासन में बोफोर्स घोटाले के कारण नाराज होकर, उन्होंने 1987 में कांग्रेस छोड़ दी और वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल में शामिल हो गए। 1989 में अलीगढ़ से सांसद चुने जाने के बाद, उन्हें संसदीय कार्य और पर्यटन राज्यमंत्री का पद सौंपा गया, जो उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था.


भाजपा में वापसी और राज्यपाल का कार्यकाल

2004 में उन्होंने भाजपा का दामन थामा, हालांकि लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण बिल पर बनी समिति के अध्यक्ष बने। अक्टूबर 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और अगस्त 2018 में जम्मू-कश्मीर भेजा गया.


अनुच्छेद 370 और राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए, अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके बाद, उन्हें गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल रहते हुए, उन्होंने कई बार सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाए.


सरकार के आलोचक के रूप में उभरना

राज्यपाल पद से हटने के बाद, मलिक ने खुलकर केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने पुलवामा हमले पर सरकार को घेरा और कहा कि सुरक्षा में चूक के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए और दावा किया कि उन्हें दो बार घूस की पेशकश की गई थी.


किसान आंदोलन और अग्निपथ योजना पर विचार

मलिक ने किसान आंदोलन के समर्थन में कई बार सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि 600 से अधिक किसानों की मौत पर सरकार ने कोई संवेदना नहीं जताई। अग्निपथ योजना को लेकर भी उन्होंने कहा कि यह युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है.