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समझें नियम 267: संसद में स्थगन प्रक्रिया का महत्व

नियम 267 संसद में कार्यवाही को स्थगित करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह नियम सांसदों को सदन में किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए नोटिस देने की अनुमति देता है। जानें कि यह नियम कैसे काम करता है, इसकी शुरुआत कब हुई, और चर्चा की अवधि क्या होती है। इस लेख में हम इस नियम के महत्व और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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समझें नियम 267: संसद में स्थगन प्रक्रिया का महत्व

नियम 267 क्या है?

नियम 267 का परिचय: आपने अक्सर सुना होगा कि संसद की कार्यवाही को रोकने के लिए सांसद नोटिस भेजते हैं। हाल ही में, AAP सांसद संजय सिंह ने SSC फेज-13 परीक्षा में अनियमितताओं के चलते नियम 267 के तहत कार्य स्थगन का नोटिस दिया। आइए जानते हैं कि सदन की कार्यवाही कैसे संचालित होती है और नियम 267 की भूमिका क्या है।


नियम 267 का उद्देश्य

नियम 267 का संबंध सदन के निलंबन से है। इसके तहत सांसद सदन की सभी कार्यवाहियों को स्थगित करने का नोटिस दे सकते हैं। सरल शब्दों में, राज्यसभा के सांसद किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए लिखित नोटिस देकर सदन के सभी लिस्टेड कार्यों को स्थगित कर सकते हैं।


चर्चा की अवधि

नियम 267 के तहत सदन में किसी भी विषय पर लगभग ढाई घंटे तक चर्चा की जा सकती है। जो सदस्य चर्चा करना चाहते हैं, उन्हें लिखित रूप में अपनी जानकारी प्रस्तुत करनी होती है। इसके साथ ही, चर्चा के कारणों को स्पष्ट रूप से बताना आवश्यक है, और इस पर दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर भी जरूरी होते हैं।


इसकी शुरुआत कब हुई?

रिपोर्टों के अनुसार, नियम 267 का पहला उपयोग यूनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स में किया गया था। भारत में, इसे भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत लागू किया गया। आजाद भारत में, इसे 1952 में लोकसभा और राज्यसभा में लागू किया गया। इस नियम में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन इसके कुछ मूल सिद्धांत आज भी अपरिवर्तित हैं।