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सरकार की जिम्मेदारी: मणिपुर और लद्दाख में हिंसा के पीछे की सच्चाई

मणिपुर और लद्दाख में हाल की हिंसा के पीछे सरकार की जिम्मेदारी पर चर्चा की गई है। यह लेख बताता है कि कैसे सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए दूसरों पर आरोप लगाया है। मणिपुर में जातीय हिंसा और लद्दाख में पूर्ण राज्य की मांग के संदर्भ में, यह आवश्यक है कि सरकार तुरंत पहल करे और राजनीतिक समाधान निकाले। जानें इस जटिल स्थिति के विभिन्न पहलुओं के बारे में।
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सरकार की जिम्मेदारी: मणिपुर और लद्दाख में हिंसा के पीछे की सच्चाई

सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी

लोकतंत्र में सरकार का संचालन सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर होता है। देश की सफलताओं और असफलताओं की जिम्मेदारी सरकार पर होती है। यह असंभव है कि इसरो और भारतीय सेना की हर उपलब्धि का श्रेय सरकार ले, लेकिन मणिपुर से लेकर लेह तक की हिंसा का दोष दूसरों पर डाल दे। पिछले कुछ वर्षों से यह स्थिति स्पष्ट हो रही है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। हर उपलब्धि के समय प्रधानमंत्री और मंत्री आगे आकर खड़े हो जाते हैं, लेकिन विफलताओं के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं।


लेह में हिंसा का आरोप

लेह में हाल ही में भड़की हिंसा की जिम्मेदारी सरकार और सत्तारूढ़ दल ने सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और कांग्रेस के काउंसलर फुंटसोग स्टैनजिन त्सेपाग पर डाली है। कांग्रेस काउंसलर के खिलाफ लेह प्रशासन ने लोगों को भड़काने का मामला दर्ज किया है। इसके अलावा, भाजपा की आईटी सेल ने कांग्रेस के एक अन्य काउंसलर स्मानला दोरजे नोरबू की प्रेस कॉन्फ्रेंस का वीडियो साझा किया है, जिसमें उन पर युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है।


मणिपुर में जारी जातीय हिंसा

केंद्र सरकार का दृष्टिकोण मणिपुर हिंसा के दौरान भी ऐसा ही था, जिसके परिणामस्वरूप वहां लगभग ढाई साल से जातीय हिंसा चल रही है। मई 2023 में जब हिंसा शुरू हुई, तब अगर सरकार ने इसकी गंभीरता को समझा होता और इसके कारणों की जांच की होती, तो सैकड़ों लोगों की जान नहीं जाती और हजारों लोग विस्थापित नहीं होते। लेकिन सरकार ने पहले कुकी और मैती समुदायों से जुड़े चरमपंथी संगठनों पर इसका दोष डाला।


सीएम और प्रधानमंत्री की देरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा 28 महीने की देरी से हुआ, और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने का निर्णय भी 20 महीने बाद लिया गया। यदि पहले ही सीएम को बदला गया होता और प्रधानमंत्री की यात्रा होती, तो स्थिति अलग हो सकती थी। अब कुकी समुदाय अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहा है।


लद्दाख की स्थिति

लद्दाख का मामला भी इसी तरह शुरू हुआ। जब जम्मू कश्मीर विशेष राज्य था, तब लद्दाख के लोगों ने अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग की थी। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। लेकिन इसके तुरंत बाद लद्दाख के लोगों ने पूर्ण राज्य की मांग शुरू कर दी।


सरकार की अनदेखी

सरकार ने पिछले छह वर्षों से चल रहे प्रदर्शनों की अनदेखी की है। सोनम वांगचुक ने इन मांगों के साथ लेह से दिल्ली तक पदयात्रा की, लेकिन सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जब उन्होंने अनशन किया, तब भी सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ।


राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा

मणिपुर और लद्दाख का विवाद केवल आंतरिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लद्दाख एक संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र है, जहां अशांति होने पर सीमा सुरक्षा पर असर पड़ेगा। इसलिए सरकार को तुरंत पहल करनी चाहिए।


राजनीतिक समाधान की आवश्यकता

सरकार को आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बचना चाहिए और मणिपुर और लद्दाख के मुद्दों को एक आवश्यक राजनीतिक समस्या मानकर समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए। नागरिक समूहों को वार्ताओं में शामिल करके व्यापक सहमति बनाने की कोशिश करनी चाहिए।


जम्मू कश्मीर का संदर्भ

लद्दाख की समस्या के एक और आयाम को ध्यान में रखना चाहिए, जो जम्मू कश्मीर के नेताओं ने इशारा किया है। सरकार जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के फैसले को टाल रही है। अब वहां चुनाव हो चुके हैं और लोकप्रिय सरकार का गठन हो चुका है, फिर भी राज्य का दर्जा नहीं देना उचित नहीं है।