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सिख श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए केंद्र का निर्णय: राजनीतिक बहस का केंद्र

केंद्र सरकार ने गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर सिख जत्थों को पाकिस्तान जाने से रोकने का निर्णय लिया है, जिसे राजनीतिक बहस का विषय माना जा रहा है। आलोचकों का कहना है कि यह कदम समुदाय के खिलाफ है, लेकिन सरकार का तर्क है कि यह सुरक्षा कारणों से आवश्यक है। इतिहास और वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए, यह निर्णय सिख श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। जानें इस निर्णय के पीछे के कारण और पाकिस्तान के प्रति सिख समुदाय की चिंताएं।
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सिख श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए केंद्र का निर्णय: राजनीतिक बहस का केंद्र

सुरक्षा कारणों से यात्रा पर रोक

गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर केंद्र सरकार द्वारा सिख जत्थों को पाकिस्तान जाने से रोकने का निर्णय राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है। आलोचकों का कहना है कि यह कदम समुदाय के खिलाफ है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह निर्णय सुरक्षा कारणों से लिया गया है।


इतिहास से मिली सीख

विभाजन के बाद ननकाना साहिब और कर्तारपुर जैसे पवित्र स्थल पाकिस्तान में रह गए, जिससे सिख श्रद्धालुओं की पहुंच उन तक लगभग असंभव हो गई। 1965 के युद्ध में पुल टूटने के कारण सीमापार यात्रा रुक गई। जून 2019 में भी लगभग 150 श्रद्धालुओं को अटारी सीमा पर सुरक्षा कारणों से रोका गया था।


कोविड महामारी के दौरान 20 महीने तक कर्तारपुर कॉरिडोर बंद रहा। हाल ही में मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के बाद जत्थों को तुरंत वापस भेज दिया गया और जून 2025 में गुरु अर्जन देव जी के शहीदी दिवस पर जत्थों को अनुमति नहीं दी गई। यह घटनाएं दर्शाती हैं कि जब भी हालात बिगड़ते हैं, यात्रा पर रोक लगानी पड़ती है।


पाकिस्तान का वास्तविक चेहरा

पाकिस्तान खुद को सिख धरोहर का रक्षक बताता है, लेकिन उसका अल्पसंख्यकों के प्रति रवैया बेहद कठोर रहा है। मंदिरों को तोड़ा गया, जबरन धर्म परिवर्तन हुए और गुरुद्वारों की देखरेख में लापरवाही बरती गई। भारत से जाने वाले जत्थों को कई बार खालिस्तानी प्रचार का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान का उद्देश्य धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है।


वर्तमान सुरक्षा स्थिति

पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थिति बेहद संवेदनशील है। ऐसे समय में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को पाकिस्तान भेजना गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। कुछ लोग इसकी तुलना क्रिकेट मैचों से करते हैं, लेकिन खिलाड़ियों को सुरक्षा घेरे में रखा जाता है, जबकि श्रद्धालु खुले स्थानों पर होते हैं और वे आसानी से निशाना बन सकते हैं।


सिख समुदाय हमेशा से राष्ट्र के साथ खड़ा रहा है और वह समझता है कि नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है। यह पाबंदी किसी की आस्था को नहीं रोकती, बल्कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। गुरुद्वारे भारत और सिख समाज के लिए हमेशा पूजनीय रहेंगे, लेकिन देश की अखंडता और नागरिकों का जीवन सबसे बड़ा धर्म है।