सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना: दक्षिण भारत में भाजपा की बढ़ती ताकत का संकेत

उपराष्ट्रपति के रूप में सीपी राधाकृष्णन का चुनाव
भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में चयन कोई आश्चर्य नहीं है। भाजपा के पास पहले से ही पर्याप्त संख्या थी, लेकिन उनकी जीत ने राजनीतिक और क्षेत्रीय संदेश भी दिए हैं। यह पद दक्षिण भारत में भाजपा की बढ़ती उपस्थिति और ओबीसी समुदाय को सशक्त बनाने का संकेत है।
चुनाव में विपक्ष की चुनौती
चुनावी मुकाबला और विपक्ष
विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को संयुक्त उम्मीदवार के रूप में पेश किया। उनका उद्देश्य तेलुगु और दक्षिण भारतीय होने के नाते भाजपा के खिलाफ संतुलन बनाना था। हालांकि, उन्हें केवल 300 वोट मिले, जबकि राधाकृष्णन ने 542 वोट प्राप्त किए। यह चुनाव औपचारिक रूप से प्रतीकात्मक था, क्योंकि उपराष्ट्रपति का पद राज्यसभा के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करता है।
आरएसएस और भाजपा के साथ संबंध
आरएसएस और भाजपा के साथ जुड़ाव
सीपी राधाकृष्णन का आरएसएस से जुड़ाव किशोरावस्था से है। उनका जन्म तिरुप्पुर में हुआ और उन्होंने व्यवसाय प्रशासन में स्नातक की डिग्री हासिल की। राधाकृष्णन ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दो बार लोकसभा चुनाव जीते। उनके राजनीतिक करियर में तमिलनाडु के हिंदुत्व-केंद्रित माहौल में संतुलन बनाए रखना शामिल रहा। उन्हें 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद झारखंड और फिर महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
व्यक्तिगत छवि और दृष्टिकोण
व्यक्तिगत छवि
राधाकृष्णन का व्यक्तित्व मृदुभाषी और समावेशी माना जाता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे आतंकवाद के खिलाफ हैं, लेकिन किसी विशेष धर्म के खिलाफ नहीं। उनके दृष्टिकोण और मिलनसारिता के कारण उन्हें 2004 में भाजपा के तमिलनाडु इकाई का प्रमुख चुना गया।
दक्षिण भारत की राजनीति में बदलाव
दक्षिण भारत की राजनीति
राधाकृष्णन गौंडर जाति से हैं, जो पश्चिमी तमिलनाडु का एक प्रभावशाली ओबीसी समुदाय है। उनका उपराष्ट्रपति बनना भाजपा के ओबीसी को राष्ट्रीय राजनीति में एकजुट करने के प्रयास का संकेत है। यह कदम दक्षिणी राजनीति में भाजपा की स्थिति को मजबूत करने के साथ ही द्रविड़ राजनीति के खिलाफ हिंदुत्व को पेश करने का भी माध्यम है।
राजनीतिक और क्षेत्रीय संदेश
राजनीतिक और क्षेत्रीय संदेश
राधाकृष्णन का चुनाव दक्षिण भारतीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाता है। वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति कार्यकाल के बाद दक्षिण का प्रतिनिधित्व केंद्र में कम हो गया था। राधाकृष्णन का निर्वाचित होना भाजपा के लिए ओबीसी सशक्तिकरण और दक्षिण की राजनीति में संतुलन का संदेश देता है।