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सीरिया के राष्ट्रपति की संयुक्त राष्ट्र महासभा में उपस्थिति: एक नया राजनीतिक अध्याय

सीरिया के नए राष्ट्रपति अहमद अल-शर्रा की संयुक्त राष्ट्र महासभा में उपस्थिति एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। उनका अतीत और वर्तमान, दोनों ही सीरिया की राजनीति में गहरा प्रभाव डालते हैं। क्या यह यात्रा सीरिया के लिए एक नया अध्याय खोलने जा रही है? जानें उनके सुधारवादी एजेंडे, पश्चिमी देशों के साथ बातचीत और घरेलू चुनौतियों के बारे में। क्या सीरिया एक सुरक्षित और स्थिर देश बन पाएगा? इस लेख में जानें उनके राजनीतिक सफर और भविष्य की संभावनाएँ।
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सीरिया के राष्ट्रपति की संयुक्त राष्ट्र महासभा में उपस्थिति: एक नया राजनीतिक अध्याय

अहमद हुसैन अल-शर्रा का न्यूयॉर्क दौरा

लगभग छह दशकों के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में किसी सीरियाई राष्ट्रपति की उपस्थिति अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ ला सकती है। सीरिया के नए राष्ट्रपति अहमद हुसैन अल-शर्रा, जिन्हें पहले अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से जाना जाता था, न्यूयॉर्क पहुँच चुके हैं। यह यात्रा केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह सीरिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बीच एक जटिल राजनीतिक संकेत भी है। 1982 में सऊदी अरब के रियाद में जन्मे और दमिश्क में बड़े हुए अल-शर्रा का जीवन किसी राजनीतिक उपन्यास से कम नहीं है। उन्होंने इराक़ में अल-कायदा के लड़ाके के रूप में लड़ाई लड़ी, फिर पांच वर्षों तक अमेरिकी हिरासत में रहे और बाद में अल-नुसरा फ्रंट और हयात तहरीर अल-शाम जैसे संगठनों का नेतृत्व किया। अब सीरिया के राष्ट्रपति बनना उनके लिए एक अप्रत्याशित मोड़ है। यह विडंबना है कि जो व्यक्ति कभी अमेरिका की जेल में रहा, वही अब अमेरिकी धरती पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से दुनिया को संबोधित करने जा रहा है। यह दृश्य न केवल सीरिया के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए भी गहरा प्रतीकात्मक महत्व रखता है, जहाँ दुश्मन और सहयोगी की सीमाएँ समय के साथ धुंधली हो जाती हैं।


अल-शर्रा का विवादास्पद अतीत

अहमद अल-शर्रा कभी हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे उग्रवादी संगठन के प्रमुख थे, जिसे पश्चिमी देशों ने आतंकवादी संगठन माना था। अमेरिकी गिरफ्तारी, अल-कायदा से संबंध और असद शासन के खिलाफ लड़ाई ने उनके जीवन को एक विवादास्पद लेकिन निर्णायक मोड़ दिया। दिसंबर 2024 में असद शासन के पतन के बाद उन्होंने सत्ता संभाली और खुद को सुधारक नेता के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया।


पश्चिमी देशों के साथ बातचीत

पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और फ्रांस, ने अल-शर्रा के साथ बातचीत शुरू कर दी है। मई 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी मुलाकात और फिर प्रतिबंधों में ढील, इस बदलाव का संकेत देती है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने आतंकवाद विरोधी नीतियों के सिद्धांतों से समझौता कर अपने रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दी है। इससे यह चिंता भी बढ़ी है कि यदि किसी पूर्व उग्रवादी को अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलती है, तो यह अन्य कट्टरपंथी संगठनों को गलत संदेश दे सकता है।


सीरिया का पुनर्निर्माण और इज़राइल के साथ वार्ता

अल-शर्रा का मुख्य एजेंडा सीरिया का पुनर्निर्माण और प्रतिबंधों से राहत है। वह यह तर्क करते हैं कि लंबे समय तक चले प्रतिबंध आम सीरियाई जनता को दंडित करते रहे हैं। ट्रंप द्वारा आंशिक छूट को उन्होंने "ऐतिहासिक कदम" बताया है, लेकिन सीज़र एक्ट जैसे कड़े प्रावधान अभी भी लागू हैं। इसके साथ ही, इज़राइल के साथ संभावित वार्ता भी अंतरराष्ट्रीय रुचि का केंद्र है। दक्षिण सीरिया पर इज़राइल का कब्ज़ा और लगातार हवाई हमले एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। अल-शर्रा ने सुरक्षा व्यवस्था पर किसी समझौते की संभावना का संकेत दिया है, जबकि इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इसे "भविष्य की संभावना" मानते हैं।


घरेलू चुनौतियाँ

अल-शर्रा की सबसे बड़ी चुनौती घरेलू स्तर पर है। ड्रूज़ और अलवी जैसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के आरोप उनकी छवि को कमजोर कर रहे हैं। उत्तर-पूर्व में कुर्द बल और दक्षिण में ड्रूज़ समुदाय अब भी स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। अल-शर्रा संघीय व्यवस्था का विरोध करते हुए "एकीकृत सीरिया" की बात करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। यदि इन असंतोषों को दूर नहीं किया गया, तो गृहयुद्ध का खतरा फिर से सीरिया को घेर सकता है।


अंतरराष्ट्रीय मान्यता और आगामी चुनाव

अल-शर्रा की अंतरराष्ट्रीय मान्यता केवल उनके सुधारवादी दावों के कारण नहीं है, बल्कि यह अमेरिका-रूस प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा भी है। रूस लंबे समय से असद शासन का प्रमुख सहयोगी रहा है और सीरिया में उसकी सैन्य मौजूदगी पश्चिम को चुनौती देती रही है। ऐसे में वॉशिंगटन के लिए अल-शर्रा के साथ संवाद और सहयोग, क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाने की एक रणनीति भी है। 5 अक्टूबर को सीरिया में संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं। यह असद शासन के पतन के बाद का पहला चुनाव है, लेकिन अधिकांश सीटें इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए भरने का प्रावधान है। करोड़ों विस्थापित नागरिकों के कारण सीधा मतदान संभव नहीं हो पा रहा। सवाल यह है कि क्या इस प्रक्रिया से वास्तविक लोकतंत्र का बीजारोपण होगा, या यह केवल सत्ता की वैधता हासिल करने का माध्यम बनेगा।


अल-शर्रा का भविष्य

अहमद अल-शर्रा का संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी उपस्थिति, सीरिया के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। लेकिन यह स्पष्ट है कि उनका अतीत, वर्तमान को पूरी तरह नहीं ढक सकता। एक समय अल-कायदा से जुड़े रहे इस नेता को अब राष्ट्र निर्माता के रूप में देखा जाएगा या नहीं, यह आने वाले वर्षों में सिद्ध होगा। सवाल यह है कि क्या सीरिया सचमुच एक सुरक्षित, स्थिर और एकीकृत देश बन पाएगा, या फिर सत्ता परिवर्तन केवल चेहरे का बदलाव साबित होगा? दुनिया की नज़रें अभी सीरिया पर टिकी हैं— जहाँ हर कदम इतिहास रचेगा या फिर इतिहास की गलतियों को दोहराएगा।