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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: आधार को मतदाता सत्यापन में शामिल करने की अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आधार को मतदाता सत्यापन के लिए एक वैध दस्तावेज के रूप में मान्यता दी है। इस निर्णय के बाद चुनाव आयोग को आधार को स्वीकार करना अनिवार्य होगा। हालांकि, इस फैसले के बावजूद आधार विवाद का समाधान होना मुश्किल प्रतीत होता है। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: आधार को मतदाता सत्यापन में शामिल करने की अनुमति

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान आधार को एक वैध दस्तावेज के रूप में मान्यता दी गई है। चुनाव आयोग ने बिहार का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां 7.24 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 99 प्रतिशत से अधिक ने आवश्यक 11 दस्तावेजों में से कोई न कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया है। इस स्थिति में, आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में मान्यता देने का कोई व्यावहारिक लाभ नहीं है। हालांकि, यह मामला इतना सरल नहीं है। सर्वोच्च अदालत का यह निर्णय उस समय आया है जब चुनाव आयोग पूरे देश में एसआईआर कराने की योजना बना रहा है। इस संदर्भ में, चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों की बैठक 10 सितंबर को बुलाई है।


मुख्य चुनाव अधिकारियों की बैठक

इस बैठक में मुख्य रूप से यह चर्चा की जाएगी कि क्या अन्य राज्यों में मतदाताओं के सत्यापन के लिए आधार को स्वीकार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद, चुनाव आयोग को आधार को स्वीकार करना अनिवार्य होगा। सुनवाई के दौरान, अदालत ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि जब पहले कहा गया था कि आधार को क्यों नहीं स्वीकार किया गया, तो जिन बूथ लेवल अधिकारियों ने आधार को स्वीकार किया, उन्हें चुनाव आयोग ने कारण बताओ नोटिस क्यों जारी किया। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उनके पास नोटिस नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत में नोटिस की कॉपी प्रस्तुत की है। अगली सुनवाई में यह मुद्दा उठेगा।


आधार विवाद का समाधान?

हालांकि, सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश आधार विवाद को समाप्त कर देगा? इसकी संभावना कम है, क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया है कि आधार नागरिकता के सत्यापन का दस्तावेज नहीं है, बल्कि इसे आवास प्रमाणपत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा। यह सही है कि आवास प्रमाणपत्र मतदाता बनने के लिए आवश्यक है, लेकिन भारत का नागरिक होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। बीएलओ स्तर पर नागरिकता की जांच संभव नहीं है, लेकिन यदि बीएलए किसी की नागरिकता को संदिग्ध बताता है, तो उसकी जांच की जाएगी। इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी जमीनी स्तर पर विवाद की संभावना बनी रहेगी।


आधार की समस्या बनी रहेगी

क्योंकि सत्यापन के दस्तावेज के रूप में आधार को स्वीकार करते हुए, बीएलए किसी मतदाता के आधार पर संदेह जता सकता है। ध्यान दें कि पूरे देश में करोड़ों की संख्या में फर्जी आधार बनाए गए हैं। बिहार के कई जिलों में 25 प्रतिशत से अधिक आबादी के आधार बने हैं। यदि बीएलए किसी मतदाता के आधार पर संदेह करता है, तो उसे यह साबित करना होगा कि उसका आधार फर्जी नहीं है। इसके लिए चुनाव आयोग द्वारा बताए गए 11 दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करोड़ों लोगों के आधार विधायक और पार्षद की चिट्ठी पर बने हैं। इसलिए, आधार के सत्यापन के लिए विधायक या पार्षद की चिट्ठी पेश करने से काम नहीं चलेगा। इसका मतलब है कि आधार की समस्या बनी रहेगी। पहले सीधे आधार को खारिज किया गया था और अब इसे घुमा कर खारिज किया जा सकता है।