सुप्रीम कोर्ट ने एकल माताओं के बच्चों के लिए ओबीसी प्रमाणपत्र पर सुनवाई शुरू की

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक याचिका पर जवाब देने का आदेश दिया, जिसमें एकल माताओं के बच्चों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की गई है। कोर्ट ने विशेष रूप से अंतरजातीय विवाह के मामलों में स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है।
ओबीसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता
एकल माताओं के लिए ओबीसी प्रमाणपत्र की मांग
सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई कर रहा था, जिसमें एकल माताओं के बच्चों को ओबीसी प्रमाणपत्र देने के दिशा-निर्देशों में संशोधन की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि प्रमाणपत्र मां के ओबीसी दर्जे के आधार पर जारी किए जाएं, न कि पितृपक्ष (दादा, पिता या चाचा) के प्रमाणपत्र पर जोर दिया जाए। मौजूदा दिशा-निर्देश पितृवंश के आधार पर प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं, जो एकल माताओं के लिए गंभीर परेशानियां उत्पन्न करता है।
कोर्ट की चिंताएं
कोर्ट की चिंता: 'तलाकशुदा महिला को क्यों पति की जरूरत?'
जस्टिस केवी विश्वनाथन और एनके सिंह की पीठ ने यह चिंता व्यक्त की कि एक तलाकशुदा महिला को अपने बच्चों के जाति प्रमाणपत्र के लिए पूर्व पति के पास क्यों जाना चाहिए। कोर्ट ने पूछा, "अगर अंतरजातीय विवाह हो तो?" और राज्यों से इस पर स्पष्टीकरण मांगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी अतिरिक्त सुझाव प्रस्तुत करने को कहा।
अगली सुनवाई की तारीख
अगली सुनवाई 22 जुलाई को
कोर्ट ने इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 22 जुलाई तक स्थगित कर दिया है, जब वह एकल माताओं के बच्चों को ओबीसी प्रमाणपत्र देने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करेगा। केंद्र ने पहले ही अपना हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ता के पक्ष में रुख जताया है, लेकिन बताया कि राज्यों की प्रतिक्रिया आवश्यक है, क्योंकि वे ऐसे दिशा-निर्देश बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के लिए पहले से ही इस तरह के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा
एकल माताओं के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह याचिका एकल माताओं के बच्चों को ओबीसी प्रमाणपत्र देने का एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है, जो सामाजिक न्याय और समानता से संबंधित है।