Newzfatafatlogo

हरियाणा और पंजाब का फसल अवशेष प्रबंधन में नया उदाहरण: 58% कमी

हरियाणा और पंजाब ने फसल अवशेष प्रबंधन में एक नई मिसाल कायम की है, जिससे उत्तर भारत के अन्य राज्यों को सीखने की प्रेरणा मिल रही है। इस वर्ष हरियाणा में फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में 58% की कमी आई है, जबकि अन्य राज्यों में यह संख्या बढ़ी है। सरकार की सख्त नीतियों और जागरूकता अभियानों के चलते यह उपलब्धि संभव हुई है। जानें कैसे ये कदम पर्यावरण और किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं।
 | 
हरियाणा और पंजाब का फसल अवशेष प्रबंधन में नया उदाहरण: 58% कमी

फसल अवशेष प्रबंधन में सफलता

हरियाणा और पंजाब ने फसल अवशेष प्रबंधन में एक नई दिशा दिखाई है, जिससे अन्य उत्तर भारतीय राज्यों को प्रेरणा मिल रही है। इस वर्ष हरियाणा में फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में 58% की कमी आई है, जो सरकार की कठोर नीतियों और जागरूकता अभियानों का परिणाम है।


इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फसल अवशेष जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर मध्य प्रदेश में यह संख्या ढाई गुना बढ़ गई है। यह उपलब्धि न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि किसानों और आम जनता के लिए एक स्वस्थ भविष्य का संकेत भी है।


पिछले वर्ष हरियाणा में 3,159 स्थानों पर फसल अवशेष जलाने की घटनाएं हुई थीं, जो इस वर्ष घटकर 1,832 रह गईं। पंजाब में भी पराली जलाने की घटनाओं में 15% की कमी आई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने हरियाणा के प्रयासों की सराहना की है, क्योंकि यह राज्य देश के गेहूं उत्पादन का 11.28% योगदान देता है।


सरकार ने फसल अवशेष जलाने पर कड़े नियम लागू किए हैं, जिसमें 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों पर 30,000 रुपये, 2-5 एकड़ वाले किसानों पर 10,000 रुपये और छोटे किसानों पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। बार-बार उल्लंघन करने पर एफआईआर और दो फसल सत्रों तक फसल बेचने पर रोक जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। ये उपाय किसानों को वैकल्पिक प्रबंधन तकनीकों की ओर प्रेरित कर रहे हैं।


फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरता और मित्र कीट नष्ट होते हैं, जिससे भूमि की उत्पादकता में कमी आती है। इसके साथ ही, इससे निकलने वाली जहरीली गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण को बढ़ाती हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। पंजाब ने पिछले पांच वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को आठ गुना कम किया है, जबकि हरियाणा में यह तीन गुना कम हुआ है।


यह दोनों राज्यों की जागरूकता और आर्थिक सहायता योजनाओं का परिणाम है। अन्य राज्यों को भी इनसे प्रेरणा लेकर पर्यावरण और कृषि को बचाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।