बिहार चुनाव में आरजेडी के प्रचार ने बढ़ाई मुश्किलें
बिहार चुनाव में विवादित प्रचार का असर
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थकों द्वारा बनाए गए कई प्रचार गीत सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए। हालांकि, ये गाने मनोरंजन के बजाय नुकसानदायक साबित हुए। खासकर आरजेडी के समर्थकों द्वारा बनाए गए कुछ वीडियो इतने विवादास्पद रहे कि उनके प्रभाव ने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि इन गैर-जिम्मेदार प्रचार तरीकों ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया, जिसके चलते आरजेडी केवल 25 सीटों पर सिमट गई।
कट्टा वाले गाने ने बढ़ाया विवाद
समस्तीपुर के मोहिउद्दीनगर में पहले चरण के प्रचार के दौरान आरजेडी के एक मंच पर एक बच्चे द्वारा गाए गए गाने ने काफी चर्चा बटोरी। गाने के बोल इतने विवादास्पद थे कि मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंच गया। गाने में कहा गया था कि यदि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते हैं, तो समर्थक लाठी नहीं, बल्कि कट्टा लेकर चलेंगे। इसने कई मतदाताओं में डर और नाराजगी पैदा की। इसके बाद जिले के डीएम को भी नोटिस भेजा गया। यह घटना राजद की छवि के लिए बड़ा नुकसान साबित हुई।
खुलेआम गाली-गलौज ने बिगाड़ा माहौल
एक अन्य घटना में, दुलारचंद यादव की शवयात्रा के दौरान कुछ लोगों ने एक विशेष समुदाय के खिलाफ गाली-गलौज की। प्रशासन हंगामे के डर से चुप रहा, लेकिन इसे देखने वाले लोगों में नाराजगी भर गई। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे व्यवहार का सीधा असर मतदान पर पड़ा। जिन लोगों को गालियों का सामना करना पड़ा, उन्होंने चुपचाप मतदान के जरिए इसका जवाब दिया।
तेजस्वी के वादों पर था भरोसा, पर समर्थकों ने किया खेल खराब
शुरुआत में कई मतदाताओं को विश्वास था कि तेजस्वी यादव के विकास से जुड़े वादे प्रभावी होंगे। हर घर से एक नौकरी, जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये वेतन जैसे वादों ने आम लोगों को आकर्षित किया। लेकिन आरजेडी समर्थकों द्वारा बनाए गए अभद्र गानों और वीडियो ने इस विश्वास को कमजोर कर दिया। लोगों में यह संदेश गया कि कुछ समर्थक माहौल बिगाड़ सकते हैं और पार्टी उन्हें रोकने में असमर्थ है।
NDA ने माहौल अपने पक्ष में किया
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने स्थिति को और स्पष्ट किया, जिसमें उन्होंने 'कट्टा संस्कृति' का उल्लेख किया। एनडीए की पार्टियों बीजेपी, जेडीयू, लोजपा रामविलास, हम और आरएलएम ने इस मुद्दे को लोगों के बीच फैलाया कि राजद की सत्ता में आने पर 'जंगलराज' लौट सकता है। इस नैरेटिव ने मतदाताओं में डर और संदेह पैदा किया, जिसका परिणाम NDA का रिकॉर्ड बहुमत था।
चुनौती नेताओं से नहीं, समर्थकों से
विशेषज्ञों का कहना है कि इस चुनाव में तेजस्वी यादव की असली चुनौती नीतीश कुमार या नरेंद्र मोदी नहीं थे, बल्कि उनके समर्थक थे जिन्होंने बिना सोचे-समझे गाने, नारे और वीडियो बनाकर माहौल खराब किया। तेजस्वी ने अपनी तरफ से कई वादे किए, लेकिन उन्होंने ऐसे हुड़दंगी व्यवहार के खिलाफ कोई सख्त संदेश नहीं दिया। परिणामस्वरूप, उनकी उम्मीदों में उनके ही समर्थकों ने छेद कर दिया।
