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बिहार में एक व्यक्ति ने अपने अंतिम संस्कार का आयोजन किया

बिहार के गया जिले के 74 वर्षीय मोहन लाल ने अपने अंतिम संस्कार का आयोजन कर एक अनोखा कदम उठाया। उन्होंने अपने जीवित रहते हुए अंतिम यात्रा निकाली, जिससे गांव में चर्चा का विषय बन गया। मोहन लाल ने यह सब इसलिए किया ताकि देख सकें कि उनकी मृत्यु पर कौन लोग उन्हें याद करेंगे। इस घटना ने न केवल गांव में बल्कि सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है। जानें इस अनोखे आयोजन के पीछे की कहानी और मोहन लाल की समाजसेवा के बारे में।
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बिहार में एक व्यक्ति ने अपने अंतिम संस्कार का आयोजन किया

बिहार के मोहन लाल का अनोखा कदम


जीवित रहते हुए अंतिम संस्कार: बिहार के गया जिले के 74 वर्षीय मोहन लाल ने अपने अंतिम संस्कार का दृश्य देखने की इच्छा को वास्तविकता में बदल दिया।


उन्होंने एक भव्य अंतिम यात्रा का आयोजन किया, जिसमें शोकगीत बजाए गए और अपने ही 'श्राद्ध भोज' का आयोजन किया। उनके इस अनोखे कार्य ने पूरे क्षेत्र में चर्चा और जिज्ञासा को जन्म दिया।


अंतिम यात्रा में जीवित व्यक्ति

गया जिले के कोनची गांव के निवासी मोहन लाल, जो भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त हैं, ने अचानक गांववालों को बताया कि वे अपने अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे हैं। पहले तो किसी ने इसे मजाक समझा, लेकिन जब उन्होंने सजाई गई अर्थी पर लेटकर श्मशान की ओर बढ़ना शुरू किया, तो लोग हैरान रह गए। ढोल-नगाड़े और शोकगीत के बीच, गांव के सैकड़ों लोग इस अनोखी यात्रा में शामिल हुए।


मरने के बाद की यादें

जब मोहन लाल श्मशान पहुंचे, तो अचानक उठ बैठे, जिससे वहां हंसी और हैरानी का माहौल बन गया। उन्होंने बताया कि यह सब उन्होंने इसलिए किया ताकि यह देख सकें कि उनकी मृत्यु पर कौन लोग उन्हें याद करेंगे और अंतिम संस्कार में आएंगे। उन्होंने कहा, 'मैं देखना चाहता था कि कौन मेरी अर्थी उठाता।'


समाजसेवा में अग्रणी मोहन लाल

हालांकि मोहन लाल का यह कदम अनोखा है, लेकिन वे हमेशा से समाजसेवा के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में, उन्होंने अपने खर्च पर गांव में एक सुसज्जित श्मशान घाट बनवाया था, ताकि बरसात के दिनों में लोगों को अंतिम संस्कार में कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। स्थानीय लोग बताते हैं कि मोहन लाल हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहते हैं।


सोशल मीडिया पर वायरल हुआ आयोजन

इस घटना के बाद, इस अनोखे आयोजन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए। लोग इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं - कुछ इसे 'जीवन का जश्न' मानते हैं, जबकि कुछ इसे 'बेतुकी सनक' कहते हैं। हालांकि, गांव के बुजुर्गों का कहना है कि मोहन लाल के इस कदम ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इंसान की सच्ची कद्र अक्सर उसके जाने के बाद ही क्यों होती है।