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डोली पर सवार होकर कर आयेंगी मां दुर्गा, मुर्गा पर होगा गमन : आचार्य चेतन पाण्डेय

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डोली पर सवार होकर कर आयेंगी मां दुर्गा, मुर्गा पर होगा गमन : आचार्य चेतन पाण्डेय


मां का आगमन और गमन दोनों हैं अशुभ, ग्रह-नक्षत्रों के बनेंगे कई योग

चतरा, 1 अक्टूबर (हि.स.)। तीन अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र तीन अक्टूबर दिन गुरुवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार शारदीय नवरात्र पुरे नौ दिनों का होगा। बावजूद इस बार शारदीय नवरात्र में महा अष्टमी और महानवमी का व्रत एक ही दिन मनाया जाएगा। क्योंकि आश्विन शुक्ल पक्ष में इस बार नवमी तिथि का क्षय है तो वहीं चतुर्थी तिथि दो दिन पड़ रहा है। ऐसे में इस बार शारदीय नवरात्र पूरे 9 दोनों का होगा। जबकि दुर्गोत्सव का महापर्व दशहरा दस दिनों का ही होगा। जन्मकुंडली, वास्तु व कर्मकांड परामर्श के विशेषज्ञ आचार्य पंडित चेतन पाण्डेय ने बताया कि माता दुर्गा का आगमन इस बार डोली पर हो रही है।

जबकि गमन मुर्गा पर होगा। शास्त्रों के अनुसार इस बार माता का आगमन और गमन दोनों अशुभ है। देवी भागवत के अनुसार माता दुर्गा का डोली पर आना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। माता दुर्गा का डोली पर आने का अर्थ है कि देश दुनिया में बीमारी और महामारी फैल सकती है। इतना ही नहीं व्यापार में मंदी और अर्थव्यवस्था में गिरावट की भी आशंका होती है। इसके साथ-साथ देश विदेश में कई अकास्मिक दुर्घटनाएं घटती है। इसी प्रकार माता का मुर्गा पर गमन भी शुभ नहीं है। माता का मुर्गा पर गमन होने से प्रजा को कष्ट होती है और राज्य विग्रह का योग बनता है। आचार्य ने बताया कि नवरात्र का शुभारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार को हो रहा है। इस दिन प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री का पूजन होगा। कलश स्थापना के लिए इस बार बढ़िया योग है। श्रद्धालु सूर्योदय काल से लेकर दिन के 3:17 बजे तक कभी भी कलश स्थापना कर सकते हैं। वैसे अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:38 से 12:30 बजे तक है। यह समय कलश स्थापना के लिए उत्तम माना गया है। नवरात्र 11अक्टूबर दिन शुक्रवार तक चलेगा। 11 अक्टूबर को महा अष्टमी और महानवमी दोनों एक ही दिन मनाये जाएंगे। इसी दिन माता रानी के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना के बाद नवरात्रि का हवन व अन्य अनुष्ठान भी किए जाएंगे। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी का त्यौहार 12 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन शमी पूजन और जयंती ग्रहण के बाद विजय यात्रा निकलेगी व प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। इस बार बेलवरण पूजन, देवी बोधन, आमंत्रण और अधिवास 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को होगा।

आचार्य ने बताया कि इस बार बेलवरण पूजा 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को होगा। जबकि नवपत्रिका प्रवेश पूजन व पूजा पंडालों में देवी की स्थापना, कालरात्रि दर्शन पूजन व महानिशा पूजा 9 अक्टूबर दिन बुधवार को किए जाएंगे। वहीं दुर्गा अष्टमी का व्रत पूजन, महागौरी दर्शन पूजन माता सिद्धिदात्री की पूजा, अन्नपूर्णा परिक्रमा नवरात्र का हवन 11अक्टूबर दिन शुक्रवार होगी।

पूजन में है संकल्प का महत्व

नवरात्र प्रारंभ तिथि प्रतिपदा यानी 3 अक्टूबर को प्रात: तैलाभ्यंग स्नानादि कर तिथिवार नक्षत्र, गोत्र, नाम आदि लेकर मां पराम्बा के प्रसन्नार्थ प्रित्यर्थ प्रसाद स्वरूप दीर्घायु, विपुल धन, पुत्र- पौत्र, श्रीलक्ष्मी, कीर्ति, लाभ, शत्रु पराजय समेत सभी तरह के सिद्यर्थ शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गा पूजा और नवकुमारी पूजन करूंगा का संकल्प करना चाहिए। गणपति पूजन, मातृका पूजन, नांदीमुख श्राद्ध इत्यादि के बाद मां दुर्गा का षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन करना चाहिए। उसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करना चाहिए।

देवी प्रसन्नता के लिए करें शारदीय नवरात्र

आचार्य ने कहा कि शारदीय नवरात्र का महात्म्य वैदिक काल से है। मार्कंडेय पुराण में देवी का महात्म्य दुर्गा सप्तशती द्वारा प्रकट किया गया है। वहां वर्णित है कि शुंभ-निशुंभ व महिषासुर आदि तामसी प्रवृत्ति वाले असुरों का जन्म होने से देवता दुखी हो गए। सभी ने चित्त शक्ति से महामाया की स्तुति की। देवी ने वरदान दिया कि-डरो मत, मैं अचिरकाल में प्रकट हो कर इस असुर पराक्रमी असुरों का संहार करूंगी। आप देवों का दुख दूर करूंगी। मेरी प्रसन्नता के लिए आप लोगों को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से घट स्थापन पूर्वक नवमी तक नौ दिन पूजा करनी चाहिए। इस आधार पर नवरात्र का महत्व अनादि काल से चला आ रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी