कृषि यंत्रीकरण के सदुपयोग से फसल का बेहतर होगा अवशेष प्रबंधन: डॉ जे पी यादव
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कानपुर,22फरवरी (हि. स.)। फसल अवशेष को जलाने की जगह अवशेष प्रबंधन पर किसानों को अधिक ध्यान देने की जरुरत है। यह प्रबंधन अब बहुत आसान हो गया है, क्योंकि उच्च तकनीक के कृषि संयंत्र आ चुके हैं। इनके सदुपयोग से जहां फसल अवशेषों को खेतों में ही मिलाकर खाद बनाई जा सकती है तो वहीं उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है। यह बातें शनिवार को सीएसए के प्रोफेसर डॉ जेपी सिंह यादव ने कही।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) कानपुर द्वारा संचालित इटावा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में पांच दिवसीय फसल अवशेष प्रबंधन योजना अंतर्गत प्रशिक्षण का आयोजन हुआ। प्रशिक्षण की शुरुआत करते हुए प्रोफेसर डॉ जेपी सिंह यादव ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन से मृदा के कटाव को रोका जा सकता है। उन्होंने किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ सह फसली खेती एवं मेड़ों पर पेड़ लगाने की सलाह भी दी।
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉक्टर विजय बहादुर जायसवाल ने किसानों को बताया कि मृदा में फार्म मशीनरी द्वारा फसल अवशेषों को सड़ाने से मृदा की सतत उर्वरता बनी रहती है।
उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी इंजीनियर धीरज ने किसानों को कृषि यंत्रीकरण जैसे हैप्पी सीडर, सुपरसीडर, मल्चर, जीरो टिलेज आदि कृषि यंत्रों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों का प्रबंध करने से कार्बन मोनोऑक्साइड में कमी लाई जा सकती है।
कार्यक्रम में इंजीनियरिंग कॉलेज के सह प्राध्यापक डॉक्टर राजीव ने बताया कि फसल अवशेषों के प्रबंधन करने से मृदा की उर्वरता कायम रखी जा सकती है।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ बी एस चौहान, सुनीता मिश्रा, स्टेनोग्राफर राम प्रसाद और केंद्र द्वारा अंगीकृत गांव नगला रतन, चंद्रपुरा, नगला पलटू,पृथ्वी रामपुर, कुसौली के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
हिन्दुस्थान समाचार / मो0 महमूद