आईएफसीएसएपी ने की एपीएफआरए अधिनियम 1978 को यथावत लागू करने की मांग
इटानगर, 22 फरवरी (हि.स.)। अरुणाचल प्रदेश की स्वदेशी आस्था और सांस्कृतिक सोसायटी (आईएफसीएसएपी) ने राज्य सरकार से अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (एपीएफआरए) 1978 को यथावत लागू करने की मांग की है। आज यहां अरुणाचल प्रेस क्लब में मीडिया को संबोधित करते हुए आईएफसीएसएपी के प्रवक्ता पाई दावे ने राज्य में अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (एपीएफआरए) 1978 की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों से आईएफसीएसएपी इस अधिनियम को लागू करने की मांग कर रहा है, लेकिन हर बार राज्य सरकार ने हमें झूठा आश्वासन दिया है। जिसके चलते आईएफसीएसएपी को कानूनी मदद लेने के लिए मजबूर होना प़ड़ा है। हमने एक जनहित याचिका दायर की है और आईएफसीएसएपी के पूर्व महासचिव द्वारा दायर जनहित याचिका के अनुसार गौहाटी उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 6 महीने के भीतर नियम बनाने का निर्देश दिया है।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी अनूठी परंपरा, संस्कृति के साथ-साथ अपनी अनूठी आस्था जिसे हम दिन-प्रतिदिन खो रहे हैं। इसलिए इसकी रक्षा के लिए इस अधिनियम की आवश्यकता है। हालांकि, हर राजनीतिक नेता सार्वजनिक मंच पर कहते हैं कि हमें अपनी अनूठी परंपरा/संस्कृति की रक्षा करनी है, लेकिन वे कभी भी कार्रवाई में नहीं करते हैं।
भारत की धर्मिक सांख्यिकी रिपोर्टों के अनुसार हिंदू 80 प्रतिशत, मुस्लिम 15 प्रतिशत, ईसाई 2 प्रतिशत और स्वदेशी केवल 0.0000012 प्रतिशत हैं। यदि हम अपने स्वदेशी लोगों और परंपरा/संस्कृति की रक्षा नहीं करते हैं तो यह बहुसंख्यक धर्म के लोग हम पर हावी हो सकते हैं। इसलिए हमें अपने लोगों, अपनी परंपरा, संस्कृति और आस्था की रक्षा के लिए इस अधिनियम की आवश्यकता है।
एपीएफआरए 1978 अधिनियम के लिए नियम बनाने और उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करके नियमों को अदालत में पेश करने के बजाय, राज्य सरकार ढिंढोरा पिट रही है कि वे इस नियम को लागू करने जा रही है और शोर मचा रही है। जिसके चलते समस्याएं पैदा हो रही है। एपीएफआरए-1978 के नियमों के निर्माण पर राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है।
अरुणाचल क्रिस्चियन फोरम (एसीएफ) के नेताओं के राज्य में 80 प्रतिशत ईसाई आबादी होने के दावे के जवाब में पाई दावे ने उनके स्रोत और किस सांख्यिकी विभाग से एसीएफ नेता यह डेटा दे रहे हैं इस पर सवाल उठाया। उन्होंने विभिन्न उपायुक्त अधिकारियों को ईसाई आबादी की जानकारी के लिए आरटीआई दायर की थी, लेकिन अधिकांश डीसी कार्यालय रिकॉर्ड उपलब्ध कराने में विफल रहे, जबकि नामसाई, चांगलांग, पश्चिम सियांग और ऊपरी सुबनसिरी ने शून्य रिपोर्ट दी और निचले सुबनसिरी में केवल दो व्यक्तियों के नाम उपलब्ध कराए। चूंकि राज्य सरकार के पास अभी भी राज्य के जनसांख्यिकीय आंकड़ों के लिए कोई तंत्र नहीं है, इसलिए एक ईसाई समुदाय खुले तौर पर यह दावा कैसे कर सकता है कि राज्य में 80 प्रतिशत ईसाई आबादी है। उन्होंने कहा कि यह एपीएफआरए-1978 अधिनियम राज्य सरकार को धार्मिक आबादी सहित राज्य की आबादी के दस्तावेजी आंकड़ों को मापने में मदद करेगा।
पाई दावे ने उन निर्वाचित प्रतिनिधियों की निंदा की जिन्होंने एपीएफआरए 1978 अधिनियम के खिलाफ बयान दिया और ईसाई समुदाय का समर्थन करते हुए कहा कि वे उन स्वदेशी लोगों का अपमान कर रहे हैं, जिन्होंने उन्हें वोट दिया। इस तरह का बयान यह एक अच्छे नेता का संकेत नहीं है।
इसके अलावा, उन्होंने राज्य सरकार से अपील की कि वह इस अधिनियम को तत्काल लागू करे और इसे निरस्त करने की कोशिश न करे। अगर सरकार इसमें विफल रहती है तो हम लोकतांत्रिक आंदोलन करेंगे और अदालत की अवमानना के रूप में कानूनी मदद भी लेंगे।
हिन्दुस्थान समाचार / तागू निन्गी