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पीड़िता को 28 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति हाई कोर्ट का फैसला

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मुंबई, 22 फरवरी (हि.स.)। बांबे हाई कोर्ट ने कथित यौन उत्पीड़न की शिकार एक 18 वर्षीय महिला को 28 सप्ताह का गर्भपात कराने की अनुमति दी है। अदालत ने यह भी कहा कि महिला को शारीरिक स्वतंत्रता चुनने का भी अधिकार है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने कहा कि महिला को स्वतंत्रता और चयन के अधिकार व मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों और राय को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय याचिकाकर्ता को गर्भपात कराने की अनुमति देता है। अदालत ने जे.जे. अस्पताल मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट की समीक्षा के बाद ये आदेश पारित किए। चिकित्सा रिपोर्टों के अनुसार, इस अवस्था में गर्भपात से पूर्णकालिक प्रसव के समान जोखिम उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, अदालत ने कहा कि यदि भ्रूण जीवित पैदा हुआ तो रिपोर्ट से चिकित्सीय जटिलताएं पैदा होंगी, इसलिए इसका ध्यान रखना आवश्यक है। यदि महिला को गर्भपात की अनुमति दी जाती है, तो क्या यह प्रक्रिया याचिकाकर्ता की भविष्य में गर्भधारण करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है? अदालत ने मुद्दा उठाया कि मेडिकल की रिपोर्ट में इस पहलू का उल्लेख नहीं किया गया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का गर्भपात उसकी चिकित्सीय योग्यता पर निर्भर करेगा। अधिकारियों को आगे की जांच के लिए भ्रूण के डीएनए को संरक्षित करने का भी आदेश दिया गया है। अदालत ने आदेश में यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता कोई बच्चा गोद लेना चाहती है तो राज्य सरकार उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगी।

याचिकाकर्ता महिला और उसके भाई के मित्र के बीच प्रेम संबंध थे। शादी का वादा करके उसे फंसाने का आरोप है। पिछले सप्ताह जब महिला का परिवार उसे अस्पताल ले गया तो पता चला कि वह गर्भवती है। इसके बाद परिवार ने आरोपी के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया। एमटीपी कानून के अनुसार पीड़िता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि 20 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने के लिए न्यायिक अनुमति की आवश्यकता होती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / वी कुमार