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आस्था व सनातनी एकता का प्रतीक है महाकुंभ: प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी

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आस्था व सनातनी एकता का प्रतीक है महाकुंभ: प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी


महाकुंभ में विज्ञान अध्यात्म और परंपरा विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

झांसी, 24 फ़रवरी (हि.स.)। युवाओं को भारत को जानना होगा। विज्ञान अध्यात्म और परंपराओं से अर्जित ज्ञान ही वैश्विक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। उपरोक्त विचार बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में महाकुंभ में विज्ञान अध्यात्म और परंपरा विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने व्यक्त किये।

उन्होंने कहा की भौतिक कल्याण के साथ ही आध्यात्मिक कल्याण भी जरूरी है। भारत केवल भूखंड नहीं है बल्कि वह दर्शन दृष्टि विचार का सामंजस्य है। जिसमें ज्ञान और विज्ञान दोनों के ही मूल्य प्रतिष्ठित हैं। विज्ञान अध्यात्म परंपरा अलग-अलग नहीं है देशानुकूल और युगानुकूल उनकी व्याख्या होती है। हमारा समाज अधिकार बोध नहीं होना चाहिए बल्कि कर्तव्य बोध होना चाहिए। सरकार नियम कानून तो बना सकती है लेकिन सभी नियम कानून का पालन करें ऐसी मूल्य परख संस्कृति प्रदान करने की आवश्यकता है। सनातनियों के हृदय में बह रही प्रेम की गंगा व महाकुंभ के प्रति अपार आस्था महाकुंभ एकता की प्रतीक है। महाकुंभ का ध्येय वाक्य सर्वसिद्धिप्रदः कुंभ है। हमारी संस्कृति की जीवनधारा गंगा है। महाकुंभ हमारी आस्था है, गंगा हमारी माता है, हमारी संस्कृति की जीवनधारा है। महाकुंभ में गंगा का दर्शन पावन है तो गंगा स्नान मोक्षदायिनी होता है। यह अवसर 12 वर्ष में एक बार आता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे है बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डा. मुकेश पाण्डेय ने समृद्धिप्रद महाकुंभ विषय पर कहा कि महाकुंभ महज स्नान नहीं, यह सनातन विचारों का महापर्व है। हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में महाकुंभ ने सनातन धर्म के माध्यम से पूरी दुनिया को शांति, सद्भाव और एकजुटता का संदेश दिया है। विशिष्ट अतिथि भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक कुंभ का संदेश सदियों से बिना विकृत हुए यथारूप पहुंचता था। आज संचार साधनों की बहुलता में संदेश का उसी रूप में पहुंचना कठिन होता है। या तो संदेश की पहुंच में समस्या होती है, या उसके अर्थ बदल जाते हैं और उनकी पवित्रता नष्ट हो जाती है। किंतु प्राचीन समय की संवाद और संचार व्यवस्था इतनी ताकतवर थी कि समाज के सामने कुंभ के संदेश और वहां मिला पाथेय यथारूप पहुंचता था। उन्होंने कहा कि कुंभ हमारे सांस्कृतिक राष्ट्र की समाज व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग हैं, जिसके माध्यम से राष्ट्र अपने संकटों के समाधान खोजता रहा है। इन्हीं रास्तों से गुजरकर हम यहां तक पहुंचे हैं। ऋषि परंपरा के उत्तराधिकारी होने के नाते हर संकट में उनका पाथेय ही हमारा संबल बना है।

विज्ञान संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर आरके सैनी ने कहा कि महाकुंभ पावन आयोजन के दौरान, करोड़ों श्रद्धालु इसमें स्नान कर आत्मिक शुद्धि का अनुभव कर चुके है। कला संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर मुन्ना तिवारी ने कहा कि अमृत स्नान करने को सनातनियों में जुनून अधिक बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ चंदन, पावन, सनातन धर्म की भूमि है। प्रत्येक मनुष्य के हृदय में महाकुंभ होना जरूरी है। इसके पूर्व राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ प्रकाश चंद्र ने स्वागत उद्बोधन किया सहसंयोजक डॉक्टर गौरी खानवलकर ने विषय की प्रस्तावना रखी। आभार प्रोफेसर मुन्ना तिवारी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर प्रोफेसर डीके भट्ट, प्रोफेसर सीबी सिंह प्रोफेसर सुनील प्रजापति डाॅ शंभू नाथ सिंह, डॉ शुभांगी निगम, डॉ प्रेम राजपूत, डॉ कमलेश बिलगाईयां, डाॅ रेखा लगरखा, डॉक्टर चित्रा गुप्ता, डॉ अंजु गुप्ता, डॉ संतोष पांडे डॉ राजेश पांडे, डॉ सुमिरन श्रीवास्तव, डॉ दीप्ति सिंह, डॉ प्रशांत मिश्रा उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया