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ग्वालियर: आठ महीने में सास फिर पति को खोया, बढ़ गई थी माधवी राजे की जिम्मेदारी

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ग्वालियर: आठ महीने में सास फिर पति को खोया, बढ़ गई थी माधवी राजे की जिम्मेदारी
ग्वालियर: आठ महीने में सास फिर पति को खोया, बढ़ गई थी माधवी राजे की जिम्मेदारी


ग्वालियर, 16 मई (हि.स.)। 25 जनवरी 2001 में सास राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हुआ फिर आठ महीने बाद 30 सितंबर 2001 में पति व पूर्व केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के निधन के बाद कैसे उन्होंने परिवार को संभाला। पति के निधन (साल 2001) व बेटे ज्योतिरादित्य के लोकसभा चुनाव हारने (2019) जैसे विपरीत समय में वही अकेली थीं, जो सिंधिया परिवार को संभाले व एक धागे में पिरोकर रखे हुए थीं। चलिए, सिंधिया परिवार के कुछ करीबियों से जानते हैं कि राजमाता माधवी राजे ने किस तरह परिवार को संभाला।

राजमाता माधवी राजे कभी किसी विवाद में नहीं रहीं। उनका जीवन राज परिवार में रहने के बाद भी जीवन की चुनौतियों से संघर्ष करता रहा है। पहले सास और पति के बीच मतभेद में वह हमेशा उनके बीच सेतु के रूप में काम करती रहीं। इसके बाद 25 जनवरी 2001 में सास विजयाराजे सिंधिया के निधन के बाद उन पर राजमाता की जि मेदारी आ गई, पर उस समय पति माधवराव मुखिया के तौर पर उनके साथ थे। पर जिंदगी में घुमाव उस समय आया, जब सास के निधन के आठ महीने बाद ही 30 सितंबर 2001 को प्लेन क्रेश में उन्होंने ग्वालियर के महाराज व पति माधवराव सिंधिया को भी खो दिया। इस समय भी उन्होंने खुद को संभाले रखा। परिवार को बिखरने से बचाया।

बीमार होकर भी बेटे को मार्गदर्शन देती रहीं

इसके बाद साल 2019 में उनकी जिंदगी में बड़ा घुमाव आया था। बेटा वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव हार गए थे। पहली बार सिंधिया घराने में कोई चुनाव हारा था। बेटे का मनोबल टूट गया था। उस समय माधवी राजे अस्वस्थ थीं, लेकिन उन्होंने बेटे का मार्गदर्शन किया। उसे बिखरने से बचाते हुए स मान के लिए कुछ भी कर जाने के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद ज्योतिरादित्य ने मार्च 2020 में कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।

राजनीति में आने की लगाई जा रही थी अटकलें

सितंबर 2001 में पति माधवराव सिंधिया के निधन होने के बाद राजमाता माधवी राजे के राजनीति में आने की अटकलें तेज हो गई थीं, क्योंकि पति के निधन से आठ महीने पहले उनकी सास व राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी दुनिया से विदा हो चुकी थीं। ऐसे में सिंधिया परिवार से राजनीति में सास की तरह आने के लिए माधवी राजे की अटकलें तेज हो गई थीं, लेकिन उन्होंने दादी और पिता की राजनीतिक विरासत बेटे ज्योतिरादित्य के लिए छोड़ते हुए समाजसेवा चुनकर राजनीतिक अटकलों पर विराम लगा दिया।

बेटे को इस कद तक पहुंचाने मे मां की अहम भूमिका

सिंधिया परिवार के करीबी व मराठा समाज के स्तंभ बाल खांडे ने बताया कि जब कैलाशवासी माधवराव सिंधिया का निधन हुआ तो राजमाता ने एक परिवार के मुखिया के तौर पर पूरी जि मेदारी संभाली। ज्योतिरादित्य सिंधिया के हर फैसले के पीछे वही खंडी थीं। राजनीति में आने के बारे में कभी नहीं सोचा। समाजसेवा को ही अपना मार्ग बनाया। आज केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जो भी हैं उसके पीछे उनकी मां राजमाता माधवी राजे सिंधिया का बड़ा योगदान हैं। उन्होंने विषम परिस्थितियों में परिवार को साधे रखा।

कभी उन्होंने राजनीति के बारे में सोचा तक नहीं

ग्वालियर के पूर्व विधायक व सिंधिया परिवार के बेहद करीबी रमेश चन्द्र अग्रवाल ने बताया कि जब माधवराव सिंधिया का निधन हुआ तो कई अटकलें चलीं कि वह राजनीति में आएंगी, लेकिन उन्होंने कभी ऐसा सोचा तक नहीं है। वह समाजसेवा के लिए समर्पित थीं और उसी मार्ग पर आगे बढ़ी हैं। वह पूरे परिवार की मुखिया थीं और उन्होंने अपनी हर जिम्मेदारी निभाई है।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेद्र/मयंक