सम्मुख में हुआ कविता पाठ और पुस्तक चर्चा
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जयपुर, 23 फ़रवरी (हि.स.)। जवाहर कला केंद्र में रविवार को सम्मुख का आयोजन हुआ। इस आयोजन में पुस्तक चर्चा और कविता पाठ के आयोजन हुए। जेकेके के कृष्णायन सभागार में हुए कार्यक्रम के मंचासीन अतिथि अभिषेक तिवारी, नंद भारद्वाज और ईश्वर दत्त माथुर रहे।
वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने अपनी पुस्तक काहू की काठी धरा के बारे में बताया कि यह एक ऐसे कर्मठ चरित्र की कथा है जो दूसरे विश्वयुद्ध में मारवाड़ रियासत के एक सैनिक के रूप में शामिल रहा। आज़ाद हिंद फौज से अपनी हमदर्दी के कारण जिसे चौदह महीने हांगकॉंग किले में बंद रहना पड़ा। महायुद्ध से लौटने पर मारवाड़ किसान सभा के साथ एक दशक तक जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध अनवरत जूझता रहा। पंचायती राज के शुरुआती कालखण्ड में अपनी काहू धरा का निर्विविरोध सरपंच बना। अपने मालाणी हलके में जिसने जल संरक्षण और शिक्षा की अलख जगाई और राजनीति में बढ़ती व्यावसायिकता के विरुद्ध ग्रामीण जनता को जागरूक किया।
देवांशु पद्मनाभ ने अपनी पुस्तक ’जहां बाट जोहते है देवता’ के बारे में बताया कि इसमे पूर्वी-मध्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के भग्न मंदिरों का वर्णन है। ये सभी महान देवालयों के क्षेत्र थे। यहाँ नागर शैली के प्रतिनिधि और विस्मयकारी देवगृह गढ़े गए थे। लगभग सब के सब तोड़ डाले गए और उन सभी देवालयों को भुला दिया गया। इन सभी मंदिरों को शास्त्रीय विधि से बनाया गया था और इनमें श्रेष्ठ वास्तु शिल्प है। ये दक्षिण के मंदिरों से किसी भी तरह कम नहीं हैं।
विजय जोशी ने अपने संपादन में प्रकाशित ’’सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक वैभव“ के बारे में बताया कि इसमें पुरातत्वविद् रमेश वारिद के समय-समय पर लिखित एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेखों का संचयन है। इन आलेखों में शैव संप्रदाय, शैव दर्शन, शिव पूजन परम्परा और पुरातात्विक सांस्कृतिक एवं कलात्मक चिंतन गहराई से विवेचित हुआ है। साथ ही वैदिक युगीन संस्कृति में वैदिक देव और देवता का विस्तृत वर्णन भी दिया है जिसमें देव और देवता शब्द की व्याख्या भी दी गई है।
इसके बाद कविता पाठ सत्र में अभिलाषा पारीक ने रजनी बीबी की पंजाबी कविता की नगरी नगरी और भंवर जी भंवर की राजस्थानी भाषा में सुण दिल्ली दौड़े मन चाल का पाठ किया। कामना राजावत ने हेली री मून और कल्याण सिंह राजावत की झूपड़ी भर हलोत्यो प्रस्तुत कर राजस्थानी भाषा के गीत गाए। इसी तरह किशन प्रणय ने मेरे खून में कभी आयरन की कमी नहीं होती मेरे खून में चंबल बहती है सुनाकर वाहवाही लूटी। वरिष्ठ साहित्यकार शारदा कृष्ण ने रस्म हूं न मैं कोई रिवाज हूं बीतता कभी नहीं वो आज हूं, हलक से चांद ले आओ मचलता मन थमेगा कब वगरना पेट से पूछो कि रोटी बिन चलेगा क्या कविता पाठ कर श्रोताओं की दाद पाई।
कार्यक्रम संयोजक प्रमोद शर्मा ने जानकारी दी कि साहित्य, गीत संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए हर माह यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश