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कांटे के झूले में सवार काछन देवी व रैलादेवी से बस्तर दशहरा के निर्विघ्न संपन्नता का मिला आशीर्वाद

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कांटे के झूले में सवार काछन देवी व रैलादेवी से बस्तर दशहरा के निर्विघ्न संपन्नता का मिला आशीर्वाद


जगदलपुर, 2 अक्टूबर (हि.स.)। रियासत कालीन बस्तर दशहरा पर्व का महत्वपूर्ण काछन गादी पूजा विधान आज बुधवार रात्री 8 बजे सम्पन्न हुआ, कुआरी कन्या पीहू दास पर काछन देवी सवार होने के बाद बेल कांटे के झूले में आरूण होकर बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव काे निर्विघ्न दशहरा पर्व संपन्नता का आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद गोलबाजार में रैला देवी की पूजन कर निर्विघ्न दशहरा पर्व संपन्नता का आशिर्वाद प्राप्त किया।

भंगारामचौक स्थित काछनगुड़ी मे दशहरा पर्व मनाने के लिए काछन देवी पूजा विधान काआयोजन किया गया। राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव, दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी, राजगुरु और मांझी-मुखिया शोभायात्रा के रूप मे काछन गुडी पहुंचे। परम्परानुसार काछन देवी का आह्वान किया गया, एक सप्ताह से व्रत-आराधना कर रही पीहू पर देवी सवार होने के बाद बेल कांटो से बने झूले पर सवार काछन देवी से बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और माझी-चालकी निर्विघ्न दशहरा पर्व संपन्नता का आशिर्वाद मांगी गई। देवी से निर्विघ्न दशहरा पर्व संपन्नताका आशिर्वाद मिलने के बाद काछन देवी और दंतेश्वरी माई की जयकारे से गूंज उठा।

काछन गादीपूजा विधान में बड़ी संख्या मे श्रद्धालु आए हुए थे। काछिनगुड़ी में रस्म पूरा होने के बाद शहर के गोलबाजार में रैला देवी का पूजन किया गया। एक किवदंती केअनुसार रैला देवी बस्तर राजपरिवार की राजकुमारी है। इस विधान में भी बस्तर राज परिवार के सदस्य शामिल होकर देवी से निर्विघ्न दशहरा पर्व संपन्नता का आशिर्वाद प्राप्त किया गया।

बस्तर कीसंस्कृति के जानकार रूद्र नारायण पाणिग्राही ने बताया कि काछनगादी का शाब्दिक अर्थ काछन देवी को गादी अर्थात गद्दी आसन प्रदान करना है। काछिन देवी रण की देवी मानी जाती हैं। मान्यता के अनुसार पनका जाति की कुंवारी कन्या पर काछन देवी आरूढ़ होती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे