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शिवलिंग दो हिस्सों में: एक शहर में है तो दूसरा 40 किलोमीटर दूर भगोरा गांव में

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शिवलिंग दो हिस्सों में: एक शहर में है तो दूसरा 40 किलोमीटर दूर भगोरा गांव में


बांसवाड़ा, 25 फ़रवरी (हि.स.)।

राजस्थान का बांसवाड़ा एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण शहर है, जिसे लौढ़ी काशी के नाम से भी जाना जाता है। इस नाम के पीछे की वजह इस क्षेत्र में शिव मंदिरों और शिवलिंगों की प्रचुरता है, जो इसे एक पवित्र तीर्थ स्थल का दर्जा देती है। बांसवाड़ा जिले में एक अनूठा शिवलिंग है, जिसके बारे में मान्यता है कि यह दो हिस्सों में विभाजित है। इस शिवलिंग का आधा हिस्सा शहर के महालक्ष्मी चौक में स्थित है, जबकि दूसरा आधा हिस्सा गढ़ी के पास भगोरा गांव में स्थापित है। इस विशेषता के कारण इसे आधा-आधा शिवलिंग कहा जाता है। इसके साथ ही, बांसवाड़ा में साढ़े बारह शिवलिंगों की मौजूदगी की भी मान्यता प्रचलित है, जो इस क्षेत्र को और भी खास बनाती है।

आधा-आधा शिवलिंग की मान्यता और इतिहास

बांसवाड़ा में इस अनोखे शिवलिंग के दो हिस्सों में बंटे होने की कहानी स्थानीय लोककथाओं और धार्मिक विश्वासों से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि यह शिवलिंग प्राचीन काल में एक ही था, लेकिन किसी चमत्कारिक या प्राकृतिक घटना के कारण यह दो हिस्सों में विभाजित हो गया। एक हिस्सा महालक्ष्मी चौक में स्थापित हुआ, जो शहर के मध्य में एक प्रमुख स्थान है, और दूसरा हिस्सा भगोरा गांव में, जो गढ़ी तहसील के निकट स्थित है। भक्तों का विश्वास है कि ये दोनों हिस्से भगवान शिव की एक ही शक्ति का प्रतीक हैं और इन दोनों स्थानों पर पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा, बांसवाड़ा में साढ़े बारह शिवलिंगों की मौजूदगी की बात भी प्रचलित है। साढ़े बारह का अर्थ यहाँ बारह पूर्ण शिवलिंग और इस आधे शिवलिंग को मिलाकर लिया जाता है। कुछ लोग इसे बारह ज्योतिर्लिंगों के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं, जिसमें यह आधा-आधा शिवलिंग एक अतिरिक्त आध्यात्मिक महत्व जोड़ता है। ये शिवलिंग स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था के प्रतीक हैं, और यहाँ हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु, खासकर सावन के महीने और महाशिवरात्रि के अवसर पर, दर्शन और पूजा के लिए आते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

बांसवाड़ा को लौढ़ी काशी कहे जाने का एक कारण यह भी है कि यहां का धार्मिक माहौल वाराणसी (काशी) की तरह पवित्र माना जाता है। आधा-आधा शिवलिंग की यह अनोखी विशेषता इसे अन्य तीर्थ स्थलों से अलग करती है। महालक्ष्मी चौक और भगोरा गांव में स्थित इन दोनों हिस्सों के दर्शन करने से भक्तों को एक ही शिवलिंग के पूर्ण दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है, ऐसा विश्वास है। इसके साथ ही, साढ़े बारह शिवलिंगों की मौजूदगी इस क्षेत्र को शिव भक्ति का एक प्रमुख केंद्र बनाती है।

यहाँ के स्थानीय मंदिरों में भगवान शिव की पूजा बड़े उत्साह और भक्ति के साथ की जाती है। महालक्ष्मी चौक का शिवलिंग जहां शहरी क्षेत्र में स्थित है, वहीं भगोरा गांव का शिवलिंग ग्रामीण परिवेश में शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। दोनों स्थानों पर श्रद्धालुओं की भीड़ खास तौर पर धार्मिक उत्सवों के दौरान देखी जा सकती है। इस मान्यता ने बांसवाड़ा को न केवल राजस्थान में, बल्कि पूरे देश में एक विशिष्ट धार्मिक पहचान दी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुभाष