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स्वामी सहजानंद सरस्वती के आदर्शों को अपनाने का लिया गया संकल्प

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स्वामी सहजानंद सरस्वती के आदर्शों को अपनाने का लिया गया संकल्प


नवादा, 26 फ़रवरी (हि.स.)। जनता दल( यूनाइटेड) कार्यालय कर्पूरी सभागार नवादा में बुधवार को स्वामी सहजानंद सरस्वती की 136 वीं जयंती मनाई गई। जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए पार्टी के जिला अध्यक्ष मुकेश विद्यार्थी ने पार्टी के साथियों से स्वामी जी के जीवन वृत्त पर चर्चा करते हुए कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती जी का जन्म महाशिवरात्रि के दिन सन 1889 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देव गांव में भूमिहार ब्राह्मण वंश के निम्न मध्यवर्गीय किसान परिवार में हुआ था।

स्वामी जी का बचपन का नाम नवरंग राय था। स्वामी जी के पिताजी का नाम वेनी राय था। बालक नवरंग राय तीन वर्ष के थे । बालपन अवस्था में माता जी का देहांत हो गई। नवरंग जी का लालन पालन मौसी जी किए। नवरंग जी काफी प्रतिभाशाली बच्चा था ।परिवार के साथ ही आसपास में भी शिक्षा का माहौल नहीं रहते हुए भी बालपन से ही शिक्षा एवं आदर्श विचारों में गहरी रुचि था । नवरंग जी का पढ़ाई में रुचि को देखते हुए 6 वर्ष के आयु में प्राथमिक स्कूल में नामांकन कराया गया । स्वामी जी महज 3 वर्ष में ही प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लिए। मिडिल स्कूल में उच्च कोटी के छात्र के रूप में अपनी पहचान बनाए । जिसके लिए विद्यालय प्रशासन के द्वारा छात्रवृत्ति दी गई।

गाजीपुर के जर्मन मिशन हाई स्कूल में हाई सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी करने के लिए दाखिला लिए। स्वामी जी का मन बचपन से ही अध्यात्म की ओर था । सन 1905 में पड़ोस के गांव में शादी कर दी गई । कुछ ही दिनों के अंतराल में उनकी पत्नी का निधन हो गया । दूसरी शादी करने के लिए परिवार के लोगों ने काफी प्रेरित किया । परंतु दूसरी शादी करने से इनकार चले गए। स्वामी जी 9 वर्षों तक संस्कृत और हिंदू दर्शन का अध्ययन किया। 1914 ईस्वी में स्वामी जी अपना पूरा समय धर्म राजनीति और सामाजिक कार्यों पर शोध किया।

स्वामी जी को ईश्वरीय पुकार का एहसास हुआ और जीवन प्रयत्न कमजोर और असहाय लोगों के भलाई के लिए काम करने का फैसला ले लिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती जी राष्ट्रवादी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत में किसान आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी जी का कार्य क्षेत्र मुख्य रूप से बिहार में केंद्रित था। सन 1940 में हुंकार हिंदी पत्रिका का प्रकाशन स्वामी सहजानंद सरस्वती जी ने किया था । स्वामी जी क्रांतिकारी, तपस्वी ,राजनीतिक कार्यकर्ता ,दार्शनिक इतिहासकार ,लेखक, किसान नेता और समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी जी किसानों एवं खेतिहर मजदूरों के बेहतरी के लिए औपनिवेशिक राज्य और दमनकारी जमींदारों को चुनौती दिए थे। स्वामी जी अपना पूरा जीवन भारतीयों के लिए राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। स्वामी जी सांसारिक उलझन से दूर काशी के अमरनाथ मठ चले गए । 18 वर्ष के आयु में अमरनाथ मठ के स्वामी अच्युतानंद से दीक्षा लिए और स्वामी जी का नाम स्वामी सहजानंद रखा गया तथा 1907 में संयासी बन गए ।

स्वामी जी ईश्वर की खोज में हिमालय, विंध्याचल के जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं की यात्रा किए। स्वामी जी को ग्रंथों में गहरी रुचि था। स्वामी जी सन्यासी का जीवन धारण करने के बाद वाराणसी चले गए। नवादा के ग्राम रेवरा में जमींदारों की लड़ाई लड़े और जमींदारों के जमीन पर कब्जा कर गरीब, मजदूर ,किसानों के बीच में समान रूप से बांटने का काम किया।सन 1920 में बाल गंगाधर तिलक जी का मृत्यु से उत्पन्न भावनाओं के बाद स्वामी जी तिलक स्वराज कोष के लिए धन इकट्ठा करना शुरू किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर सन 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होंगे। स्वामी जी शाहाबाद जिले और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में असहयोग आंदोलन के आयोजन में प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया। सन 1924 से 1928 तक स्वामी जी मध् निषेध एवं खादी के प्रचार में दिन-रात लग रहे। बिहार के शाहाबाद के सिमरी गांव में खादी बुनाई केंद्र का स्थापना किया। एवं बिहटा में राजनीतिक एवं संस्कृत शिक्षण के लिए एक आश्रम की स्थापना कीए। स्वामी जी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख रूप से हिस्सा लिए और आंदोलन के क्रम में जेल चले गए।

वैचारिक मतभेदों के कारण स्वामी जी कांग्रेस पार्टी छोड़ दिए। वाद के दिनों में स्वामी जी मुख्य रूप से किसानों मजदूरों एवं असहाय लोगों के लिए अपने आप को समर्पित कर दिए। 1929 में किसान सभा की स्थापना किया। और 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा की नींव रखी गई। स्वामी जी के जीवन के मुख्य लक्ष्य था जमींदारी उन्मूलन, ग्रामीण ऋण रद्द करना, भू राजस्व में कमी तथा भूमि स्वामित्व किसानों के हाथों समानांतर करना प्रमुख था। सन 1949 में महाशिवरात्रि के अवसर पर स्वामी जी ने पटना के पास बिहटा में सीताराम आश्रम की स्थापना किया और किसान आंदोलन का केंद्र बनाया गया। स्वामी सहजानंद सरस्वती जी को सुभाष चंद्र बोस जी ने भारत के किसान आंदोलन का निर्विवाद नेता और जनता का आदर्श और लाखों लोगों का नायक कहा।

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हिन्दुस्थान समाचार / संजय कुमार सुमन