कानपुर में एक ऐसा शिव मंदिर जिसे कहा जाता है द्वितीय काशी
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कानपुर, 25 फरवरी (हि.स.)। गंगा किनारे बसा औद्योगिक नगरी कानपुर कई चीजों के लिए विश्व में अपनी ख्याति प्राप्त किये हुए है। यही नहीं धार्मिक क्षेत्र में भी किसी अन्य शहरों से कम नहीं हैं। यहां के सिद्धनाथ मंदिर की प्रसिद्धि ऐसी है कि इसे दूसरी काशी के नाम से भी जाना जाता है। गंगा किनारे जाजमऊ स्थित इस मंदिर में वैसे तो रोजाना हजारों भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन श्रावण मास और महाशिवरात्रि के पर्व पर यह भीड़ लाखों तक पहुंच जाती है। यहां भक्त बेलपत्री, दूध, दही और जल का अभिषेक कर शिवलिंग पर चढ़ा कर मनोकामनाए मांगते हैं। इस मंदिर से जुड़ा अपना अलग इतिहास और पुराणों के अनुसार कई कहानियां प्रचलित है।
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा सिद्धनाथ मंदिर जहां बाबा के दर्शन करने के लिए शहर ही नहीं बल्कि आस-पास के कस्बों से लोग पहुंचते हैं। गंगा किनारे बना यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के साथ लोगों के लिए दार्शनिक स्थल भी बना हुआ है। यही कारण है कि श्रावण मास और महाशिवरात्रि पर्व पर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।
ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में जाजमऊ स्थित राजा ययाति का महल हुआ करता था। उनके पास एक हजार गायें थीं। लेकिन वे इन गायों में से एक गाय का ही दूध पिया करते थे। जिसके पांच थन थे। वहीं सुबह गायों को चरने के लिए छोड़ दिया जाता था। इस दौरान एक गाय अक्सर झाड़ियों के पास जाकर अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती थी। जब ये बात राजा को पता चली तब उन्होंने अपने सेवादारों से इस बारे में जानकारी करने को कहा जिस पर उन्हें बताया कि गाय झाड़ियों के पास अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती है। ऐसे में राजा ने जिज्ञासा भरे शब्दों में कहा कि हम वहां चलेंगे। उस जगह पर जाने के बाद उन्होंने उस टीले के आसपास खुदाई करवाई। जहां उन्हें एक शिवलिंग दिखाई दिया। राजा ने विधि विधान से शिवलिंग का पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया।
मान्यता यह भी है कि राजा ययाति को एक रात स्वप्न (सपना) आया कि यहां पूरी विधि विधान से सौ यज्ञ पूरे करें तो यह जगह काशी कहलाएगी। फिर क्या था? राजा ने यज्ञ प्रारंभ भी करवा दिया लेकिन राजा के निन्यानवे यज्ञ पूरे हुए ही थे कि 100वें यज्ञ के दौरान एक कौवे ने उस हवन कुंड में हड्डी डाल दी। जिससे यज्ञ खंडित हो गए और यह पवित्र स्थान काशी बनने से रह गया लेकिन आज भी सभी भक्त इसे द्वितीय काशी के रूप में जानते हैं। तबसे लेकर ये प्रसिद्ध मंदिर सिद्धनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
मंदिर के पुजारी मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि सिद्धनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन भीड़ बनी रहती है। देश के कोने-कोने से लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए यहां आते है और यहां सावन के चौथे सोमवार के दिन भव्य मेला का भी आयोजन होता है। भक्तों को सिद्धनाथ बाबा ने कभी निराश नहीं किया है। बच्चों के मुंडन हो या किसी भी प्रकार की मनोकामना बाबा सिद्धनाथ जरूर उसे पूरा करते हैं। संतान प्राप्ति के लिए लोग पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी मुराद पूरी जरूर होती है।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप