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बांध टूटने से खानाकुल के किसानों की बढ़ी मुश्किल

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बांध टूटने से खानाकुल के किसानों की बढ़ी मुश्किल


हुगली, 24 फ़रवरी (हि. स.)। खानकुल के किसानों की मौजूदा स्थिति बेहद चिंताजनक है। नदी के टूटे तटबंध, डीवीसी द्वारा पानी छोड़ना और असमय बारिश—ये सारी घटनाएं एक साथ घटित हुईं, जिसने इलाके को संकट में डाल दिया। आलू की फसल, जो तैयार होने की कगार पर थी, अब पानी में डूब गई है। किसानों का कहना है कि अगर सिंचाई विभाग ने समय रहते बांध की मरम्मत कर दी होती, तो यह तबाही टल सकती थी। किसानों का कहना है कि वर्ष 2024 की बाढ़ के बाद से बांध की हालत जस की तस बनी हुई है।

बलाईचक, नवीनचक और चौबीसपुर इलाकों में आलू की खेती को भारी नुकसान हुआ है। रविवार सुबह से शुरू हुई यह बाढ़ मुंडेश्वरी और दामोदर नदियों के टूटे तटबंधों से और बढ़ गई। किसानों का आरोप है कि बोरो चावल की खेती के लिए छोड़ा गया पानी उनकी आलू की फसल में घुस गया, क्योंकि टूटे बांध इसे रोक नहीं सके। अगर पहले सूचना मिलती, तो शायद वे फसल काटकर कुछ नुकसान बचा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब पानी में डूबी फसल के सड़ने का डर उन्हें सता रहा है, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर सकता है। किसानों की कोशिशें जारी हैं। वे खेतों से पानी निकालने की जद्दोजहद कर रहे हैं।

श्रीकांत साव जैसे किसानों ने कहा कि अचानक पानी छोड़ने और बांध टूटने से हालात बेकाबू हो गए। उनकी मांग है कि सरकार तुरंत मदद करे, वरना उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ेगा। यह गुस्सा पिछले साल की बाढ़ और बारिश से हुए नुकसान से भी जुड़ा है, जिसके बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

बीडीओ मधुमिता घोष ने कहा कि सुफल बांग्ला के जरिए आलू खरीदने की योजना बन रही है, और बांध की मरम्मत के लिए निविदा भी जारी हो चुकी है। लेकिन सवाल है कि आठ-नौ महीने बाद भी बांध मरम्मत क्यों नहीं हुई ? यह देरी प्रशासनिक लापरवाही नहीं तो और क्या है ? सिंचाई विभाग की चुप्पी और ढिलाई ने किसानों के सामने यह संकट खड़ा किया है।

इस बीच, राजनीति भी गरमा गई है। भाजपा के उमेश अधिकारी का कहना है कि तृणमूल विकास में रोड़े अटकाती है, जिससे इलाके की तरक्की रुक जाती है। दूसरी ओर, किसानों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, और पुलिस को भी स्थिति संभालने के लिए तैनात करना पड़ा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय