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काशी में गंगा का उफान: धार्मिक परंपराओं पर संकट और आर्थिक चुनौतियाँ

काशी में गंगा का जलस्तर असामान्य रूप से बढ़ गया है, जिससे घाटों की धार्मिक परंपराएँ और स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही हैं। दशाश्वमेध घाट पर आरती स्थल को पीछे खिसकाना पड़ा है, जबकि नाविकों ने छोटी नावों का संचालन रोक दिया है। इस स्थिति ने हजारों परिवारों की आजीविका को संकट में डाल दिया है। बढ़ते जलस्तर ने प्राचीन मंदिरों को भी जलमग्न कर दिया है, जिससे पूजा कर्मकांड बाधित हो रहे हैं। यह घटना जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेतों में से एक है।
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काशी में गंगा का उफान: धार्मिक परंपराओं पर संकट और आर्थिक चुनौतियाँ

काशी में गंगा का असामान्य उफान


काशी: मोक्ष की भूमि काशी इस समय माँ गंगा के अत्यधिक उफान का सामना कर रही है। कार्तिक पूर्णिमा के बाद जलस्तर में इस तरह की वृद्धि पिछले 30 वर्षों में पहली बार देखी गई है। हालांकि, पानी अभी घाटों की ऊपरी सड़क तक नहीं पहुँचा है, लेकिन निचले घाटों के अधिकांश हिस्से पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं।


दशाश्वमेध घाट पर आरती स्थल में बदलाव

गंगा के बढ़ते जलस्तर का सबसे अधिक प्रभाव दशाश्वमेध घाट पर देखा जा रहा है, जहाँ हर शाम विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती थी। अब पानी आरती स्थल तक पहुँच गया है, जिसके चलते गंगा सेवा निधि ने आरती का स्थान कुछ फ़ीट पीछे कर दिया है। पुरोहितों और स्वयंसेवकों ने सुरक्षा कारणों से अपनी चौकियाँ भी पीछे खिसका ली हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि गंगा का जल इस बार घाटों की धार्मिक परंपरा को सीधे प्रभावित कर रहा है। 


नाविकों का निर्णय: छोटी नावों का संचालन बंद

तेज़ बहाव और लगातार बढ़ते जलस्तर को देखते हुए नाविकों ने बिना किसी प्रशासनिक आदेश के छोटी नावों का संचालन स्वेच्छा से रोक दिया है। उनका कहना है कि मौजूदा हालात में नदी में उतरना यात्रियों और खुद के लिए ख़तरे से खाली नहीं है। फिलहाल, कुछ बड़ी मोटर बोट्स सीमित यात्रियों के साथ चल रही हैं, लेकिन नाविकों को डर है कि अगर जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा, तो उन्हें इन्हें भी बंद करना पड़ेगा। इस स्थिति ने घाटों पर काम करने वाले हज़ारों परिवारों की आजीविका पर गहरा असर डाला है।


आर्थिक संकट: दैनिक आय में गिरावट

वाराणसी के घाटों से जुड़ी हज़ारों जिंदगियां नाव संचालन पर निर्भर हैं। छोटी नावों का ठहराव इन परिवारों की आमदनी को लगभग शून्य पर ले आया है। कार्तिक पूर्णिमा के बाद का समय पर्यटन सीजन का चरम माना जाता है, लेकिन इस बार बढ़ते जलस्तर ने रोजगार की संभावनाएं ही डूबो दी हैं। 


डूबे मंदिर और बाधित कर्मकांड

पानी की तीव्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि घाटों पर बने सौ से अधिक छोटे-बड़े प्राचीन मंदिर अब जलमग्न हैं। कई मंदिरों की गुंबदें मुश्किल से दिखाई दे रही हैं। घाटों की सीढ़ियाँ और पूजा स्थलों के चबूतरे डूब जाने से पुरोहितों को वैकल्पिक स्थानों पर पूजा करनी पड़ रही है। करीब 8 से 10 घाटों के आपसी संपर्क मार्ग भी टूट चुके हैं, जिससे स्थानीय आवाजाही और पर्यटन दोनों पर असर पड़ा है।


भविष्य की चेतावनी

हालाँकि जलस्तर अभी ऊपरी सड़क तक नहीं पहुँचा है, लेकिन आरती स्थल तक पानी का पहुँचना और नाव संचालन का रुकना बीते 35 वर्षों का सबसे बड़ा संकेत है। यह केवल मौसमी घटना नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप अब काशी की पारिस्थितिकी और परंपरा दोनों को चुनौती दे रहे हैं।