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केरल की नायर महिलाओं की अनोखी परंपरा: संबंधम का इतिहास और प्रभाव

केरल के त्रावणकोर क्षेत्र में नायर जाति की महिलाओं की संबंधम प्रथा एक अनोखी मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी, जिसमें महिलाएं एक से अधिक पुरुषों के साथ संबंध बना सकती थीं। यह प्रथा न केवल विवाह के पारंपरिक बंधनों से मुक्त थी, बल्कि इसमें महिलाओं को संपत्ति और वंश में भी प्रमुखता दी जाती थी। जानें इस प्रथा के अंत और आधुनिक नायर महिलाओं की स्थिति के बारे में।
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केरल की नायर महिलाओं की अनोखी परंपरा: संबंधम का इतिहास और प्रभाव

सामाजिक परंपराओं की विविधता

भारत की सांस्कृतिक परंपराएं अत्यधिक विविध हैं, लेकिन कुछ प्रथाएं ऐसी भी हैं जो सामान्य धारणाओं को चुनौती देती हैं। केरल के त्रावणकोर क्षेत्र में नायर जाति की महिलाओं के बीच एक अनूठी प्रथा थी, जिसे 'संबंधम' कहा जाता था। इस प्रथा के तहत महिलाएं एक से अधिक पुरुषों के साथ वैध संबंध बना सकती थीं, और इसे समाज द्वारा स्वीकार किया जाता था।


संबंधम की परिभाषा

'संबंधम' नायर समाज की एक सामाजिक प्रथा थी, जिसमें महिलाएं पारंपरिक विवाह बंधनों से मुक्त होकर एक से अधिक पुरुषों के साथ संबंध बना सकती थीं। यह संबंध वैवाहिक नहीं था, लेकिन सामाजिक रूप से मान्य था। पुरुष और महिलाएं जब चाहें इस संबंध को समाप्त कर सकते थे।


प्रतीकात्मक विवाह की प्रक्रिया

लड़कियों के यौवन की शुरुआत पर उन्हें 'थाली केट्टू कल्याणम' नामक संस्कार से गुजरना पड़ता था। यह एक प्रतीकात्मक विवाह था, जिसमें लड़की को उच्च जाति के किसी पुरुष के साथ तीन दिन तक एकांत में रहना होता था। इसे कौमार्य विच्छेदन से भी जोड़ा जाता था।


पति की भूमिका

संबंधम में पुरुष केवल रात के समय महिला के घर आ सकते थे। वे दिन में न तो महिला से मिल सकते थे और न ही घर में प्रवेश कर सकते थे। दरवाजे पर अपने अस्त्र रखकर वे संकेत देते थे कि महिला व्यस्त है। ये पुरुष 'विजिटिंग हसबैंड्स' कहलाते थे, जिनकी विवाह या पालन-पोषण की कोई जिम्मेदारी नहीं होती थी।


महिलाओं के कई संबंध

संबंधम व्यवस्था में महिलाएं एक समय में कई पुरुषों के साथ संबंध रख सकती थीं। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक बहुपति प्रथा थी, जिसे त्रावणकोर और मलाबार समाज में पूरी सामाजिक मान्यता प्राप्त थी। इसे कभी भी अनैतिक नहीं माना गया।


वंश और संपत्ति का अधिकार

नायर समाज मातृसत्तात्मक था, जिसमें संपत्ति, वंश और पारिवारिक नाम मां की ओर से चलते थे। बच्चे मां के वंश में गिने जाते थे, और पिता की भूमिका केवल जैविक मानी जाती थी। पुरुष अपने बच्चों की बजाय अपनी बहनों के बच्चों की जिम्मेदारी निभाते थे।


महिलाओं का संपत्ति पर अधिकार

नायर महिलाएं जन्म से ही 'थारावाडु' (संयुक्त मातृसत्तात्मक परिवार) की सह-अधिकारिणी होती थीं। उन्हें जमीन, आमदनी और संपत्ति का हिस्सा मिलता था। वे लगान वसूलती थीं और अपने जीवनयापन के लिए किसी पुरुष पर निर्भर नहीं होती थीं।


संबंधम का अंत

ब्रिटिश मिशनरी और न्यायाधीश इस प्रथा को 'असभ्य' और 'अनैतिक' मानते थे। 1925 में नायर अधिनियम और 1933 में त्रावणकोर विवाह अधिनियम के जरिए संबंधम को अवैध घोषित कर दिया गया। इसके बाद नायर समाज में पारंपरिक विवाह और पितृसत्तात्मक व्यवस्था की शुरुआत हुई।


आधुनिक नायर महिलाएं

हालांकि आज यह प्रथा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है, लेकिन नायर समाज की महिलाओं में आज भी आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र सोच का असर देखा जा सकता है। वे शिक्षित, आत्मनिर्भर और सामाजिक रूप से जागरूक होती हैं।