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क्या उपेंद्र कुशवाहा का परिवारवाद आरएलएम के लिए बन रहा है संकट का कारण?

राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व पर गंभीर मतभेद उभर रहे हैं। विधायक रामेश्वर महतो ने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने के निर्णय का विरोध किया है, इसे आत्मघाती कदम बताया है। महतो का कहना है कि पार्टी अब परिवारवाद की ओर बढ़ रही है, जिससे संगठन की एकता कमजोर हो रही है। यह पहली बार है जब किसी विधायक ने इतनी मुखरता से अपनी बात रखी है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि समय रहते संतुलन नहीं बनाया गया, तो आरएलएम को आगामी चुनावों में बड़ा नुकसान हो सकता है।
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क्या उपेंद्र कुशवाहा का परिवारवाद आरएलएम के लिए बन रहा है संकट का कारण?

आरएलएम में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व पर उठे सवाल


पटना : राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व को लेकर गंभीर मतभेद सामने आ रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ विधायक और कुशवाहा के पुराने सहयोगी रामेश्वर महतो ने खुलकर विरोध किया है। महतो ने कहा कि उनके बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने का निर्णय न तो पार्टी के लिए और न ही जनता के लिए उचित है। उन्होंने इसे आत्मघाती कदम बताते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष से पुनर्विचार करने की अपील की।


क्या पार्टी परिवारवाद की ओर बढ़ रही है?
महतो ने यह भी सवाल उठाया कि क्या आरएलएम का नेतृत्व अब परिवारवाद की दिशा में बढ़ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि उपेंद्र कुशवाहा ने अपने परिवार को राजनीतिक रूप से स्थापित करने के लिए पार्टी के मूल सिद्धांतों की अनदेखी की है। महतो ने स्पष्ट किया कि उनका विरोध व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह पार्टी की संस्थागत मजबूती और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए है।

पहली बार किसी विधायक ने उठाई आवाज
यह आरएलएम में पहला अवसर है जब किसी विधायक ने सरकार गठन के बाद इतनी स्पष्टता से अपनी बात रखी है। उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता देवी के अलावा पार्टी के अन्य तीन विधायक, आनंद माधव, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह, चुनाव जीतकर आए हैं। दीपक प्रकाश के मंत्री बनने के फैसले ने पार्टी में असंतोष की लहर पैदा कर दी है, जो आरएलएम के लिए संगठनात्मक स्थिरता की चुनौती बन सकती है। महतो इस समय दिल्ली में हैं और उन्होंने भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन से भी मुलाकात की है।


आरएलएम में उभरते परिवारवाद और नेतृत्व के फैसलों पर असंतोष ने पार्टी की एकजुटता को कमजोर करने का संकेत दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के भीतर चल रहे मतभेद और नाराजगी आगामी चुनाव और संगठन की रणनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं। यदि समय रहते संतुलन नहीं बनाया गया, तो आरएलएम को बड़े राजनीतिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।