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पंजाब में जल संकट पर कार्यशाला: किसानों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया

पंजाब में जल संकट को लेकर आयोजित एक कार्यशाला में किसानों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया गया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने भूजल प्रबंधन, वर्षा जल संरक्षण और जल प्रदूषण की समस्याओं पर चर्चा की। कार्यशाला में पेश किए गए शोध निष्कर्षों ने पंजाब की जल प्रणालियों की स्थिति को उजागर किया। जानें इस कार्यशाला के दौरान क्या-क्या महत्वपूर्ण बातें साझा की गईं।
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पंजाब में जल संकट पर कार्यशाला: किसानों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया

जल संकट पर कार्यशाला का आयोजन


किसान एवं कृषि श्रमिक आयोग द्वारा जल संकट पर कार्यशाला का आयोजन


चंडीगढ़ में पंजाब राज्य किसान एवं कृषि श्रमिक आयोग की अध्यक्षता में प्रो. डा. सुखपाल सिंह के नेतृत्व में जल संकट पर दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में कार्बन डेटिंग, मिट्टी और जल के समस्थानिक अध्ययन और पंजाब में जल रिसाव से संबंधित सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन पर चर्चा की गई।


पूर्व बागवानी निदेशक डॉ. गुरकंवल सिंह ने सह-अध्यक्षता की, जबकि आयोजन का प्रबंधन पीएसएफसी के प्रशासनिक अधिकारी-सह-सचिव डा. आरएस बैंस ने किया। कार्यशाला के पहले दिन पंजाब की जटिल जल-भूगर्भीय चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई।


किसानों को जागरूक करने का प्रयास

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के विशेषज्ञों ने भूजल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण अनुसंधान और स्थायी समाधानों की जानकारी साझा की। पीएयू लुधियाना से डा. जे.पी. सिंह और डा. समनप्रीत कौर ने भूजल से संबंधित चिंताओं और संभावित समाधानों पर विस्तृत जानकारी दी। डा. कौर ने स्मार्ट सबमर्सिबल पंप के विकास की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि किसान वास्तविक समय में डेटा प्राप्त कर सकें और भूजल का समझदारी से उपयोग कर सकें।


इस चर्चा में सैलिन क्षेत्रों, भूजल पुनर्भरण की दक्षता और तकनीकों जैसे मुद्दों पर विचार किया गया।


वर्षा जल संरक्षण की आवश्यकता

विशेषज्ञों ने बताया कि पीएयू ने वर्षा जल संरक्षण के लिए कई मॉडल विकसित किए हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने की आवश्यकता है। पीने और सिंचाई योग्य जल के प्रदूषण की समस्या भी गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। वैज्ञानिकों ने कई अध्ययनों को साझा किया, जिसमें पंजाब की जल प्रणालियों का ऐतिहासिक विश्लेषण, भूजल रिचार्ज के लिए परित्यक्त कुओं और गांवों के तालाबों का उपयोग, और डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) और पारंपरिक रोपाई वाले धान की खेती के तहत भूजल पुनर्भरण स्तर का तुलनात्मक अध्ययन शामिल था।


पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के मानवविज्ञान और जलविज्ञान विभागों से डा. महेश ठाकुर, डा. जेएस शेखावत, डा. प्रकाश तिवारी और डा. जुगराज सिंह ने पंजाब में सतत जल प्रबंधन के लिए हाइड्रोजियोलाजिकल चुनौतियों, शोध निष्कर्षों और प्रस्तावित शोध-आधारित समाधानों पर प्रस्तुति दी। उनकी प्रस्तुति में पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में यूरेनियम और आर्सेनिक जैसे उभरते जल प्रदूषकों पर ध्यान केंद्रित किया गया।