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बांग्लादेश में छात्र आंदोलन: एक साल बाद भी स्थिति में सुधार नहीं

बांग्लादेश में पिछले साल शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। छात्र आंदोलन के कारण हिंसा जारी है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं। मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार कई चुनौतियों का सामना कर रही है, और छात्रों ने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई है। जानें इस संकट के पीछे की वजहें और छात्रों की नई राजनीतिक पहल के बारे में।
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बांग्लादेश में छात्र आंदोलन: एक साल बाद भी स्थिति में सुधार नहीं

बांग्लादेश में राजनीतिक संकट

बांग्लादेश: पिछले वर्ष 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग सरकार को हिंसक छात्र प्रदर्शनों के कारण सत्ता छोड़नी पड़ी। इसके बाद हसीना को भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक साल बीत जाने के बावजूद, बांग्लादेश में शांति और स्थिरता की कोई उम्मीद नहीं है। मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार कई चुनौतियों का सामना कर रही है, और आंदोलनकारी छात्र अब निराशा और गुस्से में हैं।


हिंसा का दौर जारी

हसीना सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले साल जुलाई और अगस्त में शुरू हुए छात्र आंदोलन और उसके बाद की हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान कम से कम 1,400 लोगों की जान गई, जिनमें अधिकांश छात्र शामिल थे, और 20,000 से अधिक लोग घायल हुए।


छात्रों की निराशा

छात्र आंदोलन की शुरुआत सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण के खिलाफ हुई थी, जो 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के वंशजों के लिए था। छात्रों को उम्मीद थी कि हसीना के जाने के बाद देश में लोकतंत्र, समानता और न्याय की स्थापना होगी। लेकिन एक साल बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 20 वर्षीय अब्दुल रहमान तारिक, जो आंदोलन में शामिल थे, ने कहा, "हम एक ऐसा देश चाहते थे जहां भेदभाव न हो, लेकिन अब मैं निराश हूं।"


यूनुस सरकार की चुनौतियाँ

हसीना के जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इस सरकार ने 11 सुधार आयोगों का गठन किया, जिसमें राष्ट्रीय सहमति आयोग भी शामिल है, जो भविष्य की सरकार और चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए काम कर रहा है। लेकिन आपसी मतभेदों के कारण कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई। यूनुस सरकार पर कट्टरपंथी ताकतों को रोकने में असफल रहने का आरोप है। जमात-ए-इस्लामी और हिजबुत तहरीर जैसे संगठन अब खुलकर रैलियां कर रहे हैं।


छात्रों का नया राजनीतिक कदम

छात्रों ने एक नई राजनीतिक पार्टी