बिहार के बाहुबली नेता सुनील पांडे: शिक्षा और विवादों का अनोखा सफर

सुनील पांडे का राजनीतिक सफर
बिहार के भोजपुर विधायक सुनील पांडे: जब भी बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता के संबंधों की चर्चा होती है, सुनील पांडे का नाम अक्सर उभरकर सामने आता है। वे केवल एक बाहुबली नहीं थे, बल्कि एक शिक्षित नेता भी थे, जिनके पास पीएचडी की डिग्री थी। भोजपुर जिले से चार बार विधायक रह चुके पांडे का राजनीतिक सफर विवादों से भरा रहा है।
प्रारंभिक शिक्षा का सफर
सुनील पांडे का जन्म रोहतास जिले में हुआ था। उनके पिता, कामेश्वर पांडे, एक प्रभावशाली ठेकेदार थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रोहतास में प्राप्त की और फिर बेंगलुरु में इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में छोड़कर घर लौट आए। हालांकि, उन्होंने शिक्षा को नहीं छोड़ा और आरा विश्वविद्यालय से एमए और बाद में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
सुनील पांडे का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया जब उन पर अपने रूममेट की हत्या का आरोप लगा। इसके बाद, समता पार्टी ने उन्हें पिरो सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां उन्होंने जीत हासिल की। 2005 में जदयू के टिकट पर भी उन्होंने जीत दर्ज की।
तरारी सीट पर तीसरी बार जीत
2008 में परिसीमन के चलते पिरो सीट समाप्त हो गई और तरारी सीट बनी। 2010 में उन्होंने यहां से जीत हासिल की। 2015 में, उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गईं।
कानूनी विवादों का सामना
पांडे का जीवन लगातार कानूनी विवादों में उलझा रहा। उन पर हत्या, फिरौती और अपहरण जैसे गंभीर आरोप लगे। एक समय पर उन पर मुख्तार अंसारी की सुपारी देने का भी आरोप था।
रणवीर सेना से संबंध
पांडे रणवीर सेना से भी जुड़े रहे, जो जमींदार वर्ग की एक सशस्त्र मिलिशिया थी। उनके और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच गहरी नजदीकी थी, लेकिन एक रिश्तेदार की हत्या के बाद यह संबंध बिगड़ गया। 2012 में मुखिया की हत्या के मामले में उनका नाम आया, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।
बेटे की राजनीतिक एंट्री
अब जब सुनील पांडे ने राजनीति से संन्यास ले लिया है, तो उनके बेटे विशाल प्रशांत उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। विशाल आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर तरारी सीट से चुनाव लड़ेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा पाते हैं या नहीं।