बिहार चुनाव 2025: एनडीए की ऐतिहासिक जीत और छोटी पार्टियों का प्रभाव
बिहार की राजनीति में नया मोड़
बिहार: हालिया विधानसभा चुनावों ने राज्य की राजनीतिक परिदृश्य को एक बार फिर से बदल दिया है, जैसा कि 2010 में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के समय देखा गया था। जनता ने एनडीए को 202 सीटें देकर पुनः सत्ता में लाने का निर्णय लिया, जबकि महागठबंधन केवल 35 सीटों पर सिमट गया। यह परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा आश्चर्य साबित हुआ।
अप्रत्याशित परिणामों पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया
किसी को उम्मीद नहीं थी
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस तरह के नतीजों की किसी को उम्मीद नहीं थी। उन्होंने 90 प्रतिशत के करीब स्ट्राइक रेट को असाधारण बताया और कहा कि पार्टी चुनावी आंकड़ों का गहन अध्ययन कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की जनता और महागठबंधन के सहयोगी दल भी इस परिणाम से चकित हैं।
जन सुराज पार्टी का उदय
नई शक्ति के रूप में उभरती जन सुराज पार्टी
इन चुनावों में छोटी पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित जन सुराज पार्टी ने पहली बार चुनाव में भाग लेते हुए 3.4 प्रतिशत वोट हासिल किए। हालांकि पार्टी ने कोई सीट नहीं जीती, लेकिन कई क्षेत्रों में दूसरे या तीसरे स्थान पर पहुंचकर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद, पार्टी का वोट बैंक कई जगहों पर निर्णायक साबित हुआ।
बसपा का प्रदर्शन
बसपा ने 181 सीटों पर हिस्सा लिया
मायावती की बसपा ने 181 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक सीट जीतने में सफल रही। पार्टी पर भाजपा की 'बी-टीम' होने के आरोप लगते रहे हैं, और इस चुनाव परिणाम ने इन आरोपों को कुछ हद तक सही साबित किया। 20 विधानसभा क्षेत्रों में बसपा के वोट विजेता उम्मीदवारों के जीत के अंतर से अधिक रहे, जिनमें से 18 सीटें एनडीए को मिलीं।
एआईएमआईएम का प्रदर्शन
ओवैसी ने इस बार भी पांच सीटें हासिल की
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतीं और एक पर दूसरे स्थान पर रही। पार्टी का वोट शेयर नौ सीटों पर निर्णायक साबित हुआ, जहां उसके वोट जीत के अंतर से अधिक थे। इनमें से अधिकांश सीटें एनडीए के पक्ष में गईं, जो यह दर्शाता है कि मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा एआईएमआईएम की ओर झुका।
विपक्षी वोटों का बिखराव
विपक्षी वोटों का बिखराव और NDA का लाभ
महागठबंधन, विशेषकर राजद और कांग्रेस, ने चुनाव में अपने सबसे कमजोर प्रदर्शन में से एक किया। राजद ने 23.4 प्रतिशत वोट हासिल किए, लेकिन सीटों की संख्या केवल 25 रही। वहीं भाजपा और जदयू, जिनका वोट प्रतिशत राजद से कम था, सीटों के मामले में उससे आगे निकल गए। इसका मुख्य कारण विपक्षी वोटों का बिखराव रहा।
छोटी पार्टियों का संयुक्त प्रभाव
संयुक्त रूप से 63 सीटों पर छोटी पार्टियों का असर
चुनावी आंकड़ों के अनुसार, जन सुराज, बसपा और एआईएमआईएम के संयुक्त वोटों ने 63 सीटों पर परिणाम को प्रभावित किया। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत, यानी 44 सीटें, एनडीए ने जीतीं, जबकि महागठबंधन को केवल 19 सीटें मिलीं। यह स्पष्ट है कि विपक्षी मतों का बिखराव एनडीए को अप्रत्याशित मजबूती प्रदान किया।
