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बिहार में परिवारवाद पर राजद का हमला: क्या है नई सरकार की सच्चाई?

बिहार में नई सरकार के गठन के साथ ही राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। राजद ने एनडीए पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर एक विस्तृत पोस्ट साझा किया है। इस पोस्ट में 10 मंत्रियों के राजनीतिक परिवारों का जिक्र किया गया है। क्या यह मुद्दा केवल चुनावी नारों तक सीमित है? जानें इस विवाद की गहराई और नीतीश कुमार के परिवारवाद पर पूर्व में उठाए गए सवालों का क्या हुआ।
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बिहार में परिवारवाद पर राजद का हमला: क्या है नई सरकार की सच्चाई?

बिहार में सियासी हलचल


पटना: बिहार में नई सरकार के गठन के साथ ही राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। प्रमुख विपक्षी दल राजद ने सोशल मीडिया के जरिए एनडीए पर तीखा हमला किया है। राजद ने 'एक्स' प्लेटफॉर्म पर एक विस्तृत पोस्ट साझा किया, जिसमें उसने एनडीए पर परिवारवाद का आरोप लगाया है।


राजद का आरोप

राजद ने 10 मंत्रियों के राजनीतिक परिवारों की जानकारी देते हुए लिखा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आशीर्वाद से बिहार की राजनीति से परिवारवाद को समाप्त करने का संकल्प लेते हैं।




परिवारवाद का मुद्दा

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार की नई कैबिनेट में परिवारवाद फिर से चर्चा का विषय बन गया है। नई टीम में शामिल 26 मंत्रियों में से 10 का सीधा संबंध राजनीतिक परिवारों से है। इनमें से कुछ अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि अन्य रिश्तेदारों की वजह से राजनीति में आए हैं।


इस सूची में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता शामिल हैं। कई चेहरे पहले भी सरकार का हिस्सा रह चुके हैं, जबकि कुछ नए हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि पुरानी है।


क्या परिवारवाद केवल चुनावी मुद्दा है?

नीतीश कुमार ने पहले भी परिवारवाद पर कड़ा रुख अपनाया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने लालू यादव पर हमला करते हुए कहा था कि 'विकास के नाम पर क्या किया है? बस परिवार बढ़ाया है।' इस पर तेजस्वी यादव ने विधानसभा में कड़ी आपत्ति जताई थी।


कुछ समय पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार दौरे के दौरान परिवारवाद पर सख्त टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि राजनीति में जमींदारी प्रथा नहीं चलनी चाहिए और नेताओं के बच्चों को स्वतः ही स्थान नहीं मिलना चाहिए। उनका तर्क था कि मेहनती कार्यकर्ताओं को सम्मान मिलना चाहिए, लेकिन शपथ ग्रहण के बाद जो तस्वीर सामने आई, उससे स्पष्ट हो गया कि चुनावों में परिवारवाद के खिलाफ कही गई बातें अक्सर सिर्फ चुनावी नारों तक सीमित रह जाती हैं।