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भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से दिया इस्तीफा

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे राजनीतिक माहौल में हलचल मच गई है। उनका यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 67 (क) के तहत लिया गया। धनखड़ ने 2022 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था, और उनका कार्यकाल 2027 तक चलने वाला था। यह घटना भारत के इतिहास में तीसरी बार हुई है जब किसी उपराष्ट्रपति ने कार्यकाल पूरा किए बिना इस्तीफा दिया। विपक्ष इस इस्तीफे को केवल स्वास्थ्य कारण नहीं मान रहा है, जिससे कई सवाल उठ रहे हैं। अब सभी की नजरें अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव पर हैं।
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जगदीप धनखड़ का इस्तीफा

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते अपने पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है, जिससे देश की राजनीतिक स्थिति में हलचल मच गई है। उन्होंने यह कदम संविधान के अनुच्छेद 67 (क) के तहत उठाया और सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपा। धनखड़ ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि वे अब अपनी सेहत को प्राथमिकता देंगे।


धनखड़ ने 2022 में उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण किया था, और उनका कार्यकाल 2027 तक चलने वाला था। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने बीच में ही इस जिम्मेदारी से हटने का निर्णय लिया। इस प्रकार, वे इतिहास में तीसरे उपराष्ट्रपति बन गए हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किए बिना पद छोड़ा है।


भारत के उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की यह घटना पहली बार नहीं है। इससे पहले, केवल दो उपराष्ट्रपतियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया है। पहली बार यह घटना 1997 में हुई थी जब कृष्णकांत उपराष्ट्रपति थे। उन्होंने 21 अगस्त 1997 को पद ग्रहण किया, लेकिन जुलाई 2002 में उनके निधन के कारण उनका कार्यकाल अधूरा रह गया। दूसरी बार, 1974 में बी.डी. जत्ती ने कार्यकाल समाप्त होने से पहले इस्तीफा दिया था, और इसके बाद वे अंतरिम राष्ट्रपति बने।


जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी और लगभग तीन साल तक इस पद पर रहे। उनका अचानक इस्तीफा राजनीतिक चर्चा को फिर से जीवित कर दिया है। विपक्ष इसे केवल स्वास्थ्य कारण नहीं मान रहा है और कई सवाल उठाए जा रहे हैं।


इस स्थिति ने आम जनता के मन में भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या इस तरह की घटनाएं देश की राजनीतिक स्थिरता और शासन व्यवस्था को प्रभावित करेंगी। अब सभी की नजरें अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव पर टिकी हैं, जो न केवल एक संवैधानिक पद है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक परंपरा का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।