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मध्य प्रदेश के बिशनखेड़ा गांव की अनोखी दूध परंपरा

मध्य प्रदेश के बिशनखेड़ा गांव में एक अनोखी परंपरा है जहां दूध का व्यापार नहीं किया जाता। यहां के लोग दूध को मुफ्त में बांटते हैं और मानते हैं कि पैसे लेने से उनके पशु बीमार हो जाते हैं। जानें इस गांव की संस्कृति और जीवनशैली के बारे में, जो इसे अन्य गांवों से अलग बनाती है।
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मध्य प्रदेश के बिशनखेड़ा गांव की अनोखी दूध परंपरा

बिशनखेड़ा: दूध का व्यापार नहीं, परंपरा का पालन


भोपाल। मध्य प्रदेश, जिसे भारत का दिल कहा जाता है, पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराएं, और खान-पान इसे अन्य राज्यों से अलग बनाते हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक स्थल जैसे इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, और सिंगरौली काफी प्रसिद्ध हैं। नवरात्रि के दौरान मां शारदा देवी के मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है, जबकि बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। इसी बीच, मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के बिशनखेड़ा गांव से एक दिलचस्प खबर सामने आई है। यहां के लोग दूध का व्यापार नहीं करते हैं।


बिशनखेड़ा गांव, जो जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है, की जनसंख्या लगभग 800 है। यहां हर घर में गाय और भैंस पाई जाती हैं, लेकिन दूध बेचना यहां की परंपरा का हिस्सा नहीं है। ग्रामीणों का मानना है कि यदि कोई दूध के पैसे लेता है, तो उनका पशु बीमार हो जाता है या गांव छोड़कर चला जाता है। इसलिए, गांव वाले दूध के लिए पैसे नहीं लेते और जरूरतमंदों को मुफ्त में दूध प्रदान करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।


ग्रामीणों का कहना है कि देवनारायण बाबा, जो एक सिद्ध संत हैं, इस गांव की रक्षा कर रहे हैं। इस कारण से, गांव के लोग शराब नहीं पीते और मांस का सेवन भी नहीं करते। यहां सभी शुद्ध शाकाहारी हैं। गांव के अंदर कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आ सकता, और दूध का उपयोग केवल घरेलू जरूरतों और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है, न कि व्यापार के लिए।