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महाराष्ट्र में नगर निगम चुनावों का नया राजनीतिक मोड़: क्या बदलेंगे समीकरण?

महाराष्ट्र में बीएमसी सहित 29 नगर निगम चुनावों ने राजनीतिक समीकरणों में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिया है। जहां एक ओर बीजेपी और शिंदे की शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ रही हैं, वहीं अजित पवार की एनसीपी ने अलग रास्ता अपनाया है। पुणे में नए राजनीतिक प्रयोग और गठबंधनों के टूटने से राज्य की राजनीति में नए संकेत मिल रहे हैं। जानें कैसे ये चुनाव आने वाले समय में राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकते हैं।
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महाराष्ट्र में नगर निगम चुनावों का नया राजनीतिक मोड़: क्या बदलेंगे समीकरण?

राजनीति में नया बदलाव


महाराष्ट्र में बीएमसी सहित 29 नगर निगम चुनावों ने राज्य की राजनीतिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिया है। जो गठबंधन 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एकजुट थे, वे अब नगर निगम चुनावों में बिखरते हुए दिखाई दे रहे हैं। पुणे में उभरा नया राजनीतिक मॉडल भविष्य में महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा को प्रभावित कर सकता है।


गठबंधनों में बदलाव

महाराष्ट्र की राजनीति अब तक दो प्रमुख गठबंधनों के चारों ओर घूमती रही है: एक बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति और दूसरी शिवसेना (यूबीटी) के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी। लेकिन नगर निगम चुनावों में यह स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। पुणे नगर निगम चुनाव में पहली बार तीन अलग-अलग गठबंधन चुनावी मैदान में हैं, जिससे राजनीतिक गणित और जटिल हो गया है।


बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि अजित पवार की एनसीपी ने इस गठबंधन से दूरी बना ली है। इसके विपरीत, अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की एनसीपी (एसपी) के साथ हाथ मिलाया है। कांग्रेस ने भी अलग रास्ता अपनाते हुए पुणे में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ गठबंधन किया है।


लोकसभा और विधानसभा के साथी अब अलग

महायुति में बीजेपी, शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी एक साथ थीं, जबकि महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी शामिल थीं। लेकिन नगर निगम चुनावों के दौरान ये दोनों गठबंधन टूटते हुए नजर आ रहे हैं।


महायुति के भीतर भी मतभेद स्पष्ट हैं। 29 नगर निगमों में से 15 में बीजेपी और शिंदे की शिवसेना एक साथ हैं, जबकि 14 शहरों में दोनों आमने-सामने हैं। अजित पवार की एनसीपी इन चुनावों में पूरी तरह अलग लड़ाई लड़ रही है। इसी तरह महाविकास अघाड़ी के दल भी अलग-अलग नगर निगमों में अलग रणनीति अपना रहे हैं।


पुणे में नया राजनीतिक प्रयोग

पुणे नगर निगम चुनाव इस बार सबसे अधिक चर्चा में है, जहां महायुति की तिकड़ी टूट चुकी है। बीजेपी और शिंदे की शिवसेना एक साथ चुनाव लड़ रही हैं, जबकि अजित पवार की एनसीपी ने अलग रास्ता चुना है। दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। 165 सीटों वाली पुणे नगर निगम में बीजेपी ने शिंदे गुट को 16 सीटें देने की पेशकश की है, लेकिन शिवसेना इससे संतुष्ट नहीं है और उसने लगभग 60 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं।


पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ में एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अजित पवार और शरद पवार एक बार फिर साथ आ गए हैं। दोनों एनसीपी गुटों ने मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। पुणे नगर निगम की 165 सीटों में से 130 पर अजित पवार की एनसीपी और 35 पर शरद पवार की एनसीपी (एसपी) चुनाव लड़ रही है। यह गठबंधन खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि पुणे एनसीपी का पारंपरिक गढ़ रहा है।


कांग्रेस ने भी इस बार अलग रणनीति अपनाई है। मुंबई में उसने उद्धव और राज ठाकरे के गठबंधन से दूरी बनाई, लेकिन पुणे में कांग्रेस ठाकरे ब्रदर्स के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। इससे पुणे में एक अनोखा और नया राजनीतिक समीकरण बन गया है, जिसके परिणाम पूरे राज्य की राजनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं।


किसे मिलेगा लाभ?

फिलहाल पुणे नगर निगम पर बीजेपी का नियंत्रण है। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 162 में से 97 सीटें जीतकर पहली बार मेयर बनाया था। इस बार बीजेपी उसी स्थिति को बनाए रखने की कोशिश कर रही है। वहीं, अजित पवार और शरद पवार की एकजुटता एनसीपी के पुराने वोट बैंक को फिर से मजबूत कर सकती है।


इन बदलते गठबंधनों का प्रभाव केवल पुणे तक सीमित नहीं रहेगा। ठाणे, नासिक, छत्रपति संभाजीनगर और नागपुर जैसे शहरों में भी इसके राजनीतिक संकेत देखने को मिल सकते हैं। कुल मिलाकर, नगर निगम चुनावों ने महाराष्ट्र की राजनीति में नए प्रयोगों और संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं, जिनका असर आने वाले वर्षों तक दिखाई दे सकता है।