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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: सहमति से बने संबंधों को रेप नहीं माना जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सहमति से बने संबंधों को ब्रेकअप के बाद बलात्कार नहीं माना जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि संबंध सहमति से बने हैं, तो इसके चलते आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती। इस मामले में एक शादीशुदा महिला ने वकील के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें शादी का झूठा वादा करने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की और बलात्कार और सहमति से सेक्स के बीच के अंतर को स्पष्ट किया।
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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: सहमति से बने संबंधों को रेप नहीं माना जा सकता

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय


नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बलात्कार से संबंधित एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि संबंध सहमति से बने हैं, तो ब्रेकअप के बाद इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता और न ही इसके आधार पर पुरुष के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ चल रहे मामले को पूरी तरह से खारिज कर दिया। इस याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि शादी का झूठा वादा कर बलात्कार करने के मामलों में आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत होना आवश्यक है।


सहमति से बने संबंधों की स्थिति

सहमति से बने संबंध को रेप नहीं कहा जा सकता 


बेंच ने कहा कि एक रिश्ते को केवल इसलिए बलात्कार नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसका अंत असहमति के कारण हुआ है। कोर्ट ने कहा कि यदि एक कपल के बीच सहमति से संबंध बने हैं और किसी कारणवश उनका ब्रेकअप हो जाता है, तो इसके चलते आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती। जो संबंध पहले सहमति से बने थे, यदि वह शादी में नहीं बदलते हैं, तो उसे आपराधिक रूप नहीं दिया जा सकता।


रेप और सहमति से सेक्स में अंतर

रेप और सहमति से सेक्स में बहुत फर्क


अदालत ने आगे कहा कि बलात्कार में यह दिखाना आवश्यक है कि शुरुआत से ही शादी का झूठा वादा किया गया था। इसके साथ ही यह भी दिखाना जरूरी है कि महिला ने उस वादे के कारण संबंध बनाने की सहमति दी थी। बेंच ने कहा कि बलात्कार और सहमति से सेक्स में स्पष्ट अंतर है। कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या आरोपी वास्तव में पीड़िता से शादी करना चाहता था या उसने केवल शारीरिक संबंध के लिए झूठा वादा किया था।


मामले का पृष्ठभूमि

पहले से शादीशुदा थी महिला 


इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने औरंगाबाद के एक वकील के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करने से मना कर दिया था। यह मामला 2024 में छत्रपति संभाजीनगर में दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता एक शादीशुदा महिला थीं, जो अपने पति से अलग रह रही थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात वकील से हुई और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने।


शादी का वादा और शिकायत

वकील ने शादी का वादा किया था, लेकिन...


महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि वकील ने उससे शादी करने का वादा किया था, लेकिन बाद में मुकर गया। महिला ने आरोप लगाया कि इस दौरान उनके बीच कई बार संबंध बने और वह गर्भवती भी हुईं, लेकिन वकील के कहने पर उन्होंने इसे खत्म कर दिया। जब वकील ने शादी से इनकार किया और धमकी दी, तब महिला ने उसके खिलाफ FIR दर्ज कराई।


वकील का बचाव

शिकायत बदले की भावना से की गई 


वकील ने अदालत को बताया कि शिकायत बदले की भावना से की गई थी। उसने यह भी कहा कि उसने महिला को डेढ़ लाख रुपये देने से इनकार किया था, जिसके बाद यह शिकायत की गई। आरोपी ने आगे कहा कि तीन साल के रिश्ते के दौरान महिला ने कभी भी यौन हिंसा की शिकायत दर्ज नहीं कराई थी।


अदालत की चेतावनी

संबंध सहमति से बने, जबरदस्ती नहीं...


अदालत ने पूरे मामले को देखते हुए कहा कि यह रिश्ता धोखे या जबरदस्ती का परिणाम नहीं था, बल्कि दोनों के बीच सहमति से बना था। बेंच ने कहा कि यह संबंध आपसी लगाव के कारण बने हैं। इस रिश्ते को केवल इसलिए अपराध नहीं माना जा सकता क्योंकि शादी का वादा पूरा नहीं किया गया। जज ने असफल रिश्तों में बलात्कार के प्रावधानों के गलत इस्तेमाल को लेकर कड़ी चेतावनी दी है।