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श्री गणेश का जन्म: पौराणिक कथाएं और उत्सव की धूमधाम

श्री गणेश का जन्म भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार कोरोना के चलते उत्सव की भव्यता में कमी आ सकती है, लेकिन घरों में इसे उत्साह के साथ मनाया जाएगा। जानें गणेश जी के जन्म की पौराणिक कथाएं, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की कहानियां शामिल हैं। कैसे गणेश जी को हाथी का सिर मिला और उनके जन्म के पीछे की रोचक घटनाएं।
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श्री गणेश का जन्म और उत्सव

श्री गणेश का जन्म: पौराणिक कथाएं और उत्सव की धूमधाम


ज्योतिष: श्री गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। उनका जन्म भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस अवसर पर देशभर में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि, इस बार कोरोना के कारण उत्सव की भव्यता में कमी आ सकती है, फिर भी घरों में इसे उत्साह के साथ मनाया जाएगा।


आज हम आपको श्री गणेश के जन्म से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएं बताएंगे। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार, गणेश के जन्म के बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। वराहपुराण और शिवपुराण में उनके जन्म की अलग-अलग कहानियां मिलती हैं।


गणेश के जन्म की कथाएं:
वराहपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने गणेश जी को पंचतत्वों से बनाया। जब गणेश का रूप देवताओं को ज्ञात हुआ, तो उन्हें चिंता हुई कि कहीं वह सबका ध्यान न खींच लें। इस डर को भांपते हुए भगवान शिव ने गणेश का पेट बड़ा कर दिया और उनका मुंह हाथी का बना दिया।


वहीं, शिवपुराण में एक अलग कथा है। इसके अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई और उससे एक पुतला बनाया। जब उन्होंने उसमें प्राण डाल दिए, तब गणेश का जन्म हुआ। माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि वह द्वार पर बैठकर उसकी रक्षा करें।


जब भगवान शिव घर आए और गणेश से मिलने की कोशिश की, तो गणेश ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इस पर दोनों के बीच विवाद हुआ, जो युद्ध में बदल गया। भगवान शिव ने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया।


जब माता पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वह दुखी होकर बाहर आईं। शिवजी ने पार्वती को समझाया कि वह गणेश को पुनर्जीवित करेंगे, लेकिन इसके लिए एक सिर की आवश्यकता थी। गरूड़ जी को उत्तर दिशा में भेजा गया, लेकिन उन्हें कोई ऐसा बच्चा नहीं मिला। अंत में, उन्होंने एक हाथी के बच्चे का सिर लाया। भगवान शिव ने उसे गणेश के शरीर से जोड़कर प्राण डाल दिए। इस प्रकार गणेश जी को हाथी का सिर मिला।


गणेश चालीसा में वर्णित कथा: माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धारण कर आए और उन्हें वरदान दिया कि वह बिना गर्भ धारण किए ही बुद्धिमान पुत्र प्राप्त करेंगी।


इस घटना से चारों लोकों में खुशी का माहौल बन गया। भगवान शिव और पार्वती ने एक विशाल उत्सव का आयोजन किया, जिसमें देवी-देवता और ऋषि-मुनि शामिल हुए। शनि महाराज भी इस उत्सव में आए, लेकिन उनकी दृष्टि से बालक को नुकसान हुआ। अंततः गणेश जी का सिर हाथी का बना।