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Pitru Paksha 2025: द्वादशी तिथि का महत्व और श्राद्ध विधि

पितृपक्ष 2025 का पावन समय श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। इस वर्ष पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर को समाप्त होगा। द्वादशी तिथि का श्राद्ध 18 सितंबर को किया जाएगा, जिसमें पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है। जानें इस दिन के शुभ मुहूर्त और श्राद्ध करने की विधि, जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिले और वंशजों के जीवन में सुख-समृद्धि बढ़े।
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Pitru Paksha 2025: द्वादशी तिथि का महत्व और श्राद्ध विधि

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष का महत्व

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष का यह पवित्र समय देशभर में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों का श्राद्ध तिथि के अनुसार करने से उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही, वंशजों के जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस वर्ष पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू हुआ था और 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा।


द्वादशी तिथि का श्राद्ध आज

द्रिक पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि 17 सितंबर की रात 11:39 बजे से आरंभ होकर 18 सितंबर की सुबह 11:24 बजे तक रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए द्वादशी श्राद्ध आज, 18 सितंबर को किया जाएगा।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वादशी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन किसी भी माह के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुआ हो। इसके अतिरिक्त, जिन लोगों ने संन्यास या वैराग्य का जीवन अपनाया हो, उनका श्राद्ध भी इस दिन किया जाता है। इसे संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है। इस श्राद्ध से आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।


श्राद्ध के शुभ मुहूर्त

  • कुतुप मुहूर्त – सुबह 11:50 बजे से दोपहर 12:29 बजे तक

  • रौहिण मुहूर्त – दोपहर 12:39 बजे से 1:28 बजे तक

  • अपराह्न काल – दोपहर 1:28 बजे से 3:55 बजे तक


कैसे करें श्राद्ध?

  • इस दिन प्रातः स्नान के बाद घर को गंगाजल और गौमूत्र से शुद्ध करें।

  • दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करना शुभ माना जाता है।

  • आंगन में रंगोली बनाएं और पितरों के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।

  • ब्राह्मणों को आमंत्रित करके उन्हें भोजन कराएं और दक्षिणा व दान दें।

  • श्राद्ध कर्म में तिल, सफेद वस्त्र, दूध, शहद, गंगाजल, सफेद फूल और गौ-दान का विशेष महत्व होता है।


पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया

  1. श्राद्ध में स्नान के बाद दाहिने हाथ के अंगूठे से जल तर्पण किया जाता है।

  2. इसके बाद आटा, चावल, काले तिल, शहद और घी से बने पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं।

  3. ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा है।

  4. पितरों के प्रसाद स्वरूप भोजन का एक अंश चींटियों, गाय, कौए और कुत्तों को भी अर्पित किया जाता है।

  5. अंत में जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।