अंबाला मां काली मंदिर: गुप्त नवरात्रि में शराब भोग की अनोखी परंपरा

अंबाला मां काली मंदिर की विशेषताएँ
अंबाला का मां काली मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है, खासकर गुप्त नवरात्रि के दौरान जब भक्तों की भीड़ यहां उमड़ती है।
इस मंदिर में मां काली को शराब का भोग चढ़ाने की परंपरा है, और इसका मुख्य द्वार श्मशान की दिशा में खुलता है। यह विशेषता इसे अन्य काली मंदिरों से अलग बनाती है। गुप्त नवरात्रि का पर्व 4 जुलाई तक मनाया जा रहा है, जिसमें भक्त मां पार्वती की पूजा करते हैं।
शराब भोग की परंपरा
अंबाला मां काली मंदिर में शराब का भोग चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। कहा जाता है कि यह मंदिर अंग्रेजों के समय से भी पहले का है। अंग्रेजों ने इस परंपरा पर रोक लगाई थी, लेकिन उनके जाने के बाद यह फिर से शुरू हो गई।
मंदिर का मुख्य द्वार श्मशान की ओर खुलता है, जो इसे देश में अनोखा बनाता है। यहां मां भैरव काली के साथ भगवान शिव और हनुमान जी के मंदिर भी हैं। यह परंपरा भक्तों में गहरी आस्था जगाती है।
40 दिन की पूजा से पूरी होती हैं इच्छाएँ
यह मंदिर शुकुल कुंड रोड पर स्थित है और इसकी देखरेख एक बुजुर्ग पुजारी और उनके बेटे द्वारा की जाती है। इसे बाबा का डेरा भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो भक्त लगातार 40 दिन तक मां काली के दर्शन करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।
गुप्त नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या में वृद्धि होती है। यहां शराब का भोग और श्मशान की ओर खुलता द्वार इसे विशेष बनाता है। भक्तों का विश्वास है कि मां काली यहां हर दुख को दूर करती हैं।
मंदिर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता
अंबाला मां काली मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां भैरव काली, शिव और हनुमान जी की उपस्थिति इसे आध्यात्मिक केंद्र बनाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और भक्ति का माहौल बना रहता है।
पुजारी के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना बाबा जी ने की थी। यह स्थान भक्तों को आस्था और शांति प्रदान करता है, और इसकी अनोखी परंपराएं इसे हरियाणा का प्रमुख तीर्थ स्थल बनाती हैं।