अनंत चतुर्दशी: पूजा विधि और महत्व

अनंत चतुर्दशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत भगवान की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। यह पर्व अनंत सूत्र, जो लाल और पीले धागे से बना होता है, को हाथ में बांधकर भगवान विष्णु से आशीर्वाद लेने का विशेष अवसर है। जो भक्त इस दिन व्रत और पूजा करते हैं, उन्हें दीर्घायु, पापों से मुक्ति और इच्छित फल प्राप्त होते हैं।
व्रत और पूजा विधि
प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थान पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पंचामृत, पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करें।
अनंत सूत्र को चौदह गांठ लगाकर हाथ में धारण करें। यह सूत्र अनंत भगवान की कृपा का प्रतीक है।
व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या के समय प्रसाद ग्रहण करते हैं।
पूजा के दौरान "ॐ अनन्ताय नमः" मंत्र का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्य मुनि से किया। जब कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर ससुराल से घर लौट रहे थे, तब रास्ते में कुछ स्त्रियां अनंत भगवान की पूजा करते दिखाई पड़ीं। शीला ने अनंत−व्रत का महत्व जानकर उन स्त्रियों के साथ पूजा की और अनंत सूत्र बांध लिया। इसके फलस्वरूप शीला का घर धन−धान्य से भर गया।
एक दिन कौण्डिन्य मुनि ने अपनी पत्नी के हाथ में बंधे अनंत सूत्र को देखा और भ्रमित होकर पूछा कि क्या उसने उन्हें वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है। शीला ने विनम्रता से उत्तर दिया कि यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। लेकिन कौण्डिन्य ने इसे गलत समझा और अनंत सूत्र को तोड़कर आग में डाल दिया। इसके परिणामस्वरूप उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई।
कौण्डिन्य मुनि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया और अनंत भगवान से क्षमा मांगने के लिए वन में गए। उन्हें एक वृद्ध ब्राह्मण ने आत्महत्या करने से रोका और चतुर्भुज अनंत देव का दर्शन कराया। भगवान ने मुनि से कहा कि तुमने अनंत सूत्र का तिरस्कार किया है, इसके प्रायश्चित के लिए तुम्हें चौदह वर्ष तक अनंत−व्रत का पालन करना होगा। कौण्डिन्य ने इस आज्ञा को स्वीकार किया और चौदह वर्ष तक अनंत व्रत का पालन करके अपनी खोई हुई समृद्धि को पुनः प्राप्त किया।
गणेश विसर्जन और सांस्कृतिक महत्व
अनंत चतुर्दशी का पर्व महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक सहित पूरे देश में गणेशोत्सव के समापन का प्रतीक है। इस दिन भव्य शोभायात्राओं और भक्ति गीतों के साथ गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाता है। यह अवसर समाज में एकता, उत्साह और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।
अनंत चतुर्दशी केवल भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की आराधना का पर्व नहीं है, बल्कि यह गणेशोत्सव की भव्य समाप्ति का भी दिन है। यह पर्व हमें सिखाता है कि अनंत भगवान की कृपा से जीवन के दुख दूर होकर सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।